ताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़

विपक्षी नेताओं की बैठक से क्यों रहती है बसपा की दूरी? आखिर मायावती के एकला चलो की क्या है वजह?

विपक्षी नेताओं की बैठक से क्यों रहती है बसपा की दूरी? आखिर मायावती के एकला चलो की क्या है वजह?

विपक्षी नेताओं की बैठक से क्यों रहती है बसपा की दूरी? आखिर मायावती के एकला चलो की क्या है वजह?

पेगासस जासूसी मामले और केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष इस वक्त आक्रामक रवैया अपनाए हुए है। राहुल गांधी विपक्षी नेताओं को एकजुट करने की कोशिश में लगे हुए हैं। दूसरी ओर ममता बनर्जी भी सभी विपक्ष के नेताओं को एक प्लेटफार्म पर लाने की कोशिश कर रही हैं। हाल में ही राहुल गांधी को देखें तो वह विपक्षी नेताओं के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं के साथ उन्होंने चाय पार्टी भी की थी। इसके अलावा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की थी। हालांकि किसी भी बैठक में बसपा की ओर से ना तो मायावती और ना ही कोई और नेता इसमें शामिल हुआ। दूसरी ओर ममता बनर्जी भी हाल में ही दिल्ली दौरे पर थीं जहां उन्होंने तमाम विपक्ष के बड़े नेताओं से मुलाकात की। लेकिन मायावती दूरी बनाए रखी। वर्तमान परिस्थिति में देखें तो भाजपा के विरोध में ममता और राहुल का चेहरा साफ तौर पर उभर रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि खुद को दलित राजनेता के तौर पर स्थापित कर चुकीं मायावती आखिर विपक्षी नेताओं की बैठक से दूर क्यों रहती हैं?

मायावती ने भी पेगासस मामले में जांच की मांग की है। कृषि कानूनों को लेकर उन्होंने भी सरकार की आलोचना की थी। इसके अलावा समय-समय पर भाजपा सरकार द्वारा लाए गए नीतियों की जमकर आलोचना करती हैं। लेकिन वह विपक्ष के साथ नहीं रहती। विपक्ष की एकजुटता में वह लगातार गैरमौजूदगी रहती हैं और ना ही उनकी पार्टी की ओर से कोई भागीदारी दिखाई जाती है। मायावती ने 2018 के बाद विपक्षी एकजुटता को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखाई है। 2018 में वह एचडी कुमारास्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के बड़े नेताओं के साथ में शामिल हुईं थी। उसे जमावड़े में खुद सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव जैसे कई बड़े नेता मौजूद रहे। लेकिन उसके बाद मायावती धीरे-धीरे विपक्षी एकजुटता से दूरी बनाने लगीं।

मायावती की विपक्षी एकता से दूरी यूं ही नहीं है। विपक्षी एकता की कवायद शुरू होने के साथ ही कई क्षेत्रीय दल एक साथ आ गए हैं। पर मायावती अब भी सोच समझकर आगे बढ़ना चाहती हैं। जब विपक्षी दलों ने सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर भी बैठक बुलाई थी तब भी बसपा ने शामिल होने से इनकार कर दिया। मायावती की इस रणनीति को लेकर यह माना जाता है कि वह विपक्षी पार्टियों के साथ खड़े होकर प्रधानमंत्री पद की खुद की दावेदारी को कमजोर नहीं करना चाहती है। मायावती आज भी खुद प्रधानमंत्री बनने का सपना देखती हैं और अपनी सियासत को दोबारा परवान चढ़ाने की कवायद में लगातार जुटी हुई हैं। मायावती भले ही मीडिया की सुर्खियों में नहीं रहती लेकिन जानकार यह मानते हैं कि उनकी राजनीति का तरीका अलग है और वह उस में लगी हुई हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी हमने देखा कि कैसे मायावती प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रही थीं। उन्होंने तो यह तक कह दिया कि मैं चुनाव नहीं लड़ रही लेकिन परिस्थिति आने के बाद वह संसद का सदस्य जरूर बन जाएंगी।

मायावती इस बात को भलीभांति समझती हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता वाया उत्तर प्रदेश ही जाता है। वह देश की पहली दलित से प्रधानमंत्री और दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनने के सपने को भरपूर हवा देना चाहती हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश में अपने खोए जनाधार को वापस पाने की कवायद भी कर रही हैं। साथ ही साथ दूसरे राज्यों में सियासी बिसात भी बिछा रखी है। यही कारण है कि पंजाब में अकाली दल के साथ बसपा का गठबंधन हुआ। साथ ही साथ अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव है जिसकी तैयारियों में वह लगी हुई हैं। वह लगातार लखनऊ में रह रही है और बिना किसी गठबंधन के उत्तर प्रदेश में उतरने की तैयारी में हैं।

IMG-20250402-WA0032

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!