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हर सरकार ने इस्लामाबाद को कर्ज के दलदल में ही ढकेला, क्या है जिन्ना के सपनों वाला देश की कर्ज कथा

हर सरकार ने इस्लामाबाद को कर्ज के दलदल में ही ढकेला, क्या है जिन्ना के सपनों वाला देश की कर्ज कथा

भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान वैसे तो हर समय भारत के साथ युद्ध की फिराक में रहता है। लेकिन सच तो ये है कि पाकिस्तान भारत के हाथों नहीं बल्कि अपने नेताओं के हाथों पहले ही हार चुका है। पिछले दो दशकों में पाकिस्तान का कुल सार्वजनकि कर्ज में 1500 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। साल 2000 के बाद पाकिस्तान की हर सरकार के कार्यकाल के अंत में देश का सार्वजनिक ऋण डेढ़ से दोगुना तक बढ़ गया। फिर चाहे देशभक्ति का राग अलापना वाला सैन्य शासन हो या फिर सेना की कठपुतली सरकारें। दोनों की मिलीभगत ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गर्त में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। साल 2000 में पाकिस्तान का कुल कर्ज 3.1 ट्रिलियन रुपये था। लेकिन 2008 में जब पाकिस्तान में मुशर्रफ के सैन्य शासन का खात्मा हुआ तो उस वक्त तक पाकिस्तान के कुल कर्ज में 100 फीसदी का इजाफा हुआ था। ये बढ़कर 6.1 ट्रिलियन रुपये पर पहुंच गया था।

किसी भी देश के कंगाल होने के पीछे क्या वजह होती है? पहला कारण है ड्विडलिंग करेंसी रिजर्व यानी की खजाने का खत्म होना। दूसरी वजह होती है जनता द्वारा टैक्स नहीं दिया जाना। जिससे की खजाना खत्म होता जाता है। तीसरा बड़ा कारण केवल और केवल चीजें इमपोर्ट करना और कोई भी चीज एक्सपोर्ट नहीं करना। ऐसी स्थिति में उस देश का पैसा बाहर जा रहा है। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कारण विकास के लिए अन्य देशों से पैसा उधार लेना। पांचवा कारण करेंसी का अवमूल्यन।

2008 में पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी की सरकार का शासन आया और ये 2013 तक चला। पांच साल के कार्यकाल में पाकिस्तान का सार्वजनिक ऋण 130% बढ़कर 14.3 ट्रिलियन रुपये हो गया था। पीपीपी के बाद नवाज शरीफ की सरकार आई और साल 2018 तक ये चली। इस दौरान सार्वजनिक कर्ज 76 प्रतिशत बढ़कर 25 ट्रिलियन रुपये हो गया। फिर आया वो दौर जब पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के कप्तान से सियासतदां बने इमरान खान देश की सत्ता पर काबिज हुए। नया पाकिस्तान का नारा देकर शासन संभालने वाले इमरान के 42 महीने के शासन के अंत में ऋण का बोझ 44.3 ट्रिलियन रुपये था। उनके पौने चार साल के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान के कर्ज में 77 प्रतिशत का इजाफा हुआ।

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