मणिपुर:पैते वेंग इलाके के लोगों के लिए कहर साबित हुई तीन मई की शाम
मणिपुर:पैते वेंग इलाके के लोगों के लिए कहर साबित हुई तीन मई की शाम

हिंसाग्रस्त मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैते वेंग इलाके के लोगों के लिए तीन मई की शाम कहर साबित हुई, जब अचानक वहां भीड़ एकत्र हो गई, पथराव करने लगी और नारे लगाने लगी। साथ ही, स्थानीय लोगों को अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया। मानव विज्ञानी और कुकी उप-जनजाति से संबंध रखने वाले लेखक डॉ. एच कामखेनथांग मणिपुर की राजधानी इंफाल के पैते वेंग इलाके में अपने बंगले के पुस्तकालय में अध्ययन कर रहे थे, तभी उनके घर के पास एकत्र हुई भीड़ ने उपद्रव मचाना शुरू कर दिया। मणिपुर में तीन मई का पूरा दिन तनावपूर्ण रहा और चुराचांदपुर एवं इंफाल में कई स्थानों पर प्रदर्शन हुए, जिनमें से कई ने हिंसक रूप ले लिया। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि नगा और कुकी जैसे आदिवासियों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे पर्वतीय जिलों में रहते हैं। स्वतंत्र पत्रकार होइह्नु हौजेल ने कहा, ‘‘यह जर्मनी के क्रिस्टलनाख्ट की तरह था… मानो कोई कहर टूट पड़ा हो। तनाव चरम पर पहुंच गया था और भीड़ ने हमारे घरों पर हमला करना शुरू कर दिया था।’’ क्रिस्टलनाख्ट यानी ‘टूटे शीशों की रात’ (नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास) का इस्तेमाल यहूदियों के खिलाफ नौ-10 दिसंबर 1938 को हुए हिंसक दंगों के संदर्भ में किया जाता है। हौजेल ने तीन मई की रात को याद करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैंने मुख्यमंत्री, अन्य मंत्रियों को फोन किए…लेकिन दो से तीन घंटे तक भीड़ को उपद्रव करने से नहीं रोका गया।’’ हौजेल और उनके अन्य परिजन किसी तरह मेइती समुदाय से संबंध रखने वाले एक पड़ोसी के घर पहुंचे और वहां शरण ली।
पैते वेंग, इंफाल के बीचों-बीच स्थित ऐसी जगह है, जहां पैते जनजाति और मेइती समुदाय के कई संपन्न परिवार रहते हैं। हौजल ने कहा, ‘‘मैंने जिसे भी फोन किया, उसने मदद करने, सुरक्षा बल भेजने का वादा किया… लेकिन सच्चाई यह है कि सैनिकों को बहुत देर बाद भेजा गया।’’ उनके पड़ोस में रह रहे और पैते जूमी समुदाय से संबंध रखने वाले वुंगखाम हांगजु और मेइती समुदाय से संबंध रखने वाली उनकी पत्नी मधुमती ख्वाइराकपम ने पैते वेंग इलाके की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर स्थित अपने घर में रात का भोजनकिया ही था कि तभी भीड़ वहां पहुंच गई। उनकी बेटी मानचिन ने कहा, ‘‘अचानक बिजली के खंभों पर किसी धातु से प्रहार करने से उत्पन्न आवाज आने लगी। ऐसा मणिपुर में भीड़ को इकट्ठा करने के लिए किया गया, जो नशे में शोर मचाती और पथराव करते हुए पहुंची। गिरजाघर, हमारे सामने वाले मकान को जला दिया गया और तब हमें लगा कि अब हमारी ही बारी है।’’ बचे हुए लोगों ने चारों तरफ शीशे के टुकड़े पड़े देखे।
अपना सामान लेकर वहां से भागने की कोशिश कर रहे लोगों के बैग छीन लिए गए और कुछ को पीटा भी गया। मानचिन के पड़ोसी में रहने वाले उनके भाई (56) थनलखानलियान ने मेइती समुदाय द्वारा संचालित पास के एक होटल में शरण ली। थनलखानलियान ने कहा, ‘‘पुलिस आई, लेकिन मूकदर्शक बनी रही।यह योजनाबद्ध लग रहा था…।’’ मानचिन ने इस दृश्य को ‘‘कहर’’ बताया और कहा कि जिन ‘‘सुंदर घरों में हमारा बचपन बीता था, वे आग की लपटों से घिर गए थे।’’ लेखक कामखेनथांग, थनलखानलियान और मानचिन समेत जो लोग बच गए, उन्हें अंतत: सेना ने सुरक्षित निकालकर शिविर पहुंचाया। कई लोग हवाई मार्ग से पड़ोसी राज्य चले गए। उस रात करीब 40 मकान और गिरजाघर जलाकर खाक कर दिए गए। अब पड़ोसी राज्यों या दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर रह रहे पैते वेंग के निवासियों का कहना है कि वे अब वापस नहीं जाएंगे। मानचिन ने कहा, ‘‘कोई भरोसा नहीं बचा है, शांति बिल्कुल नहीं बची है।’’ थनलखानलियान ने कहा, ‘‘हमें कहीं और…जीवन नए सिरे से शुरू करना होगा। और कोई दूसरा रास्ता मुझे नजर नहीं आता।