शख्सियत

Ruskin Bond Birthday: जानिए गुलाम भारत में पैदा होने वाले Ruskin Bond कैसे बन गए सच्चे भारतीय

Ruskin Bond Birthday: जानिए गुलाम भारत में पैदा होने वाले Ruskin Bond कैसे बन गए सच्चे भारतीय

कभी अकेलापन महसूस हो तो उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों की गोद में बैठ जाइए। इससे न सिर्फ आपका अकेलापन दूर होगा, बल्कि हरियाली, झरने और पहाड़ों की खूबसूरती देख आप सब कुछ भूल जाएंगे। आपको बता दें कि यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि एक अंग्रेज के साथ जब बचपन में ऐसा हुआ तो उन्होंने इस बात का जिक्र किया। महज 10 साल की उम्र में उस अंग्रेज के पिता की मौत हो गई। जिसके बाद उसके रिश्तेदार उन्हें कट्टर अंग्रेज बनाना चाहते थे। लेकिन उस मासूम बच्चे को सादा जीवन बिताना काफी पसंद था।

उसे कई बार अपने रिश्तेदार की फटकार भी सुननी पड़ती थी। जिसके बाद वह बच्चा गुमसुम रहने लगा। अगर आप अभी तक इस शख्सियत को नहीं पहचान पाएं हैं, तो बता दें कि हम रस्किन बॉन्ड के बारे में बता रहे हैं। जिनके नाम को आज पूरी दुनिया जानती है। फेमस लेखक रस्किन बॉन्ड। आज यानी की 19 मई को वह अपना 89वां बर्थडे मना रहे हैं। वह उत्तराखंड के मसूरी में पिछले 59 सालों से रह रहे हैं। स्किन बॉन्ड के विश्व प्रसिद्ध साहित्य के कारण भारत के उत्तराखंड और मसूरी को पूरी दुनिया में जाना जाता है। रस्किन बॉन्ड ब्रिटिश मूल के भारतीय लेखक हैं।

जन्म

भारत की आजादी से पहले 19 मई 1934 को रस्किन बॉन्ड का जन्म हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। बॉन्ड के पिता ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स में थे। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा शिमला के विशप कॉटन स्कूल से हुई थी। महज 8 साल की उम्र में उनके पैरेंट्स का तलाक हो गया। जिसके बाद उनकी मां ने पंजाबी हिंदू व्यक्ति से शादी कर ली। रस्किन अपने पिता के काफी करीब थे। लेकिन जब रस्किन 10 साल के थे तो उनके पिता की युद्ध के दौरान मौत हो गई थी। जिसके बाद देहरादून में उनकी मां और सौतेले पिता ने उनको पाला था।

पहला उपन्यास

बता दें कि महज 16 साल की उम्र में रस्किन बॉन्ड ने अपना पहला उपन्यास लिखा था। हाईस्कूल पास करने के बाद वह अन्य युवाओं की तरह अपने जीवन में कुछ बढ़कर और बेहतर चाहते थे। जिसके कारण वह ब्रिटेन में अपनी मौसी के पास चले गए और वहां 2 साल तक रहे। इस दौरान उन्होंने लंदन में अपना पहला उपन्यास ‘रूम ऑन द रूफ’ लिखना शुरू कर दिया। जब रस्किन 21 साल के थे तब उनका उपन्यास प्रकाशित हुआ था।

साल 1956 में रस्किन ने अपने इस उपन्यास के लिए ‘जॉन लेवेनिन राइस पुरस्कार’ जीता था। बता दें कि यह सम्मान उसे दिया जाता है, जो 30 वर्ष से कम उम्र के ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का लेखक होता है। इस पुरस्कार में उन्हें जो पैसे मिले। उसका उपयोग उन्होंने भारत के देहरादून में बसने के लिए किया था। इसके अलावा उन्होंने जीवन यापन के लिए देहरादून के कई समाचार पत्रों फ्रीलांसिंग का काम किया। वहीं पूरी तरह से लेखक बनने के लिए रस्किन मसूरी चले गए। यहां पर वह अपने दत्तक परिवार के साथ रहते हैं। मसूरी में स्थित रस्किन के घर का नाम ‘आईवी कॉटेज’ है।

सम्मान

बाल साहित्य में रस्किन के योगदान को देखते हुए साल 1999 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। इसके बाद साल 2014 में उनको पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। साल 1993 में उन्हें ‘अवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

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