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देखी हैं लकड़ी की गगनचुंबी इमारतें!

देखी हैं लकड़ी की गगनचुंबी इमारतें!

देखी हैं लकड़ी की गगनचुंबी इमारतें!

लोगों के रहने के लिए दुनिया भर में बहुमंज़िला इमारतें बनाई जा रही हैं. ये इमारतें स्टील और कंक्रीट से बनाई जा रही हैं. आज किसी भी इमारत को मज़बूती देने के लिए इन्हीं का इस्तेमाल होता है.

मगर क्या आप को पता है कि दुनिया के कई शहरों में लकड़ी से बहुमंज़िला इमारतें बनाई जा रही हैं? बात यक़ीन के क़ाबिल भले न लगे, मगर है सौ फ़ीसद सच.

वो लकड़ी जिससे इंसान इमारतें बनाना बंद कर चुका था, उसने आज के दौर में वापसी की है. हां, ये बात और है कि अभी बहुत से लोगों को लकड़ी से बनी इमारत की मज़बूती पर भरोसा नहीं है.

भरोसा तो लोगों को कंक्रीट से बनी इमारत पर भी नहीं था. कंक्रीट से पहली बहुमंज़िला इमारत 1903 में अमरीका से सिनसिनाटी शहर में बनाई गई थी.

ये 16 मंज़िला इमारत थी, जिसका नाम था इनगाल्स बिल्डिंग. बहुत से लोगों को आशंका थी कि ये इमारत एक रात में ही भर-भराकर गिर जाएगी.

एक रिपोर्टर ने रात भर जागकर इमारत पर निगाह रखी थी कि अगर वो गिरी तो उसके लिए बहुत बड़ी ख़बर होगी.
लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ।

और अब दुनिया भर में लकड़ी से बहुमंज़िला इमारतें बनाने का काम शुरू हुआ है. लोग आज भी सवाल उठा रहे हैं. लकड़ी की बहुमंज़िला इमारत मज़बूत होगी? वो सड़ेंगी तो नहीं? वो जल तो नहीं जाएंगी?

ऐसी ही 34 मंज़िल की लकड़ी की इमारत बनाने का ठेका मिला है, सीएफ मॉलर आर्किटेक्ट को. कंपनी के आर्किटेक्ट ओला जॉनसन कहते हैं कि लकड़ी की बिल्डिंग बनाने के कई फ़ायदे हैं. वो जल्दी से बनाई जा सकती हैं. कंक्रीट से इमारत बनाने में वक़्त लगता है. उसे सूखने के लिए काफ़ी वक़्त देना पड़ता है.

लकड़ी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. उन्हें बिल्कुल सटीक आकार में काटकर एक-दूसरे से जोड़कर जल्दी से इमारत तैयार की जा सकती है. दूसरा फ़ायदा लकड़ी के वज़न में हल्के होने का है.

लंदन के हैक्ने इलाक़े में लकड़ी की बनी एक नौ मंज़िला इमारत है. इसका नाम है मरे ग्रोव. अगर ये इमारत कंक्रीट से बनाई जाती, तो इसके लिए माल इकट्ठा करने के लिए 900 भारी भरकम ट्रक लगाने पड़ते.

लंदन की वॉ थिसल्टन आर्किटेक्ट्स के एंथनी थिसल्टन कहते हैं कि लकड़ी से इमारत बनाई गई तो केवल 100 ट्रकों ने मिलकर सारा सामान हैक्ने तक पहुंचा दिया.

कंक्रीट और स्टील से बिल्डिंग बनाने से क़ुदरत को भी बहुत नुक़सान होता है. बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने में बहुत प्रदूषण होता है. दुनिया भर के कुल कार्बन उत्सर्जन में से 8 फ़ीसद कंक्रीट और 5 प्रतिशत स्टील की वजह से होता है.

आज पूरी दुनिया में लकड़ी की बहुमंज़िला इमारतें बनाई जा रही हैं. नॉर्वे से लेकर न्यूज़ीलैंड तक इस तरह के तजुर्बे कर रहे हैं. अमरीका के मिनियापोलिसि में लकड़ी से 18 मंज़िला बिल्डिंग बनाई जा रही है.

इसे बनाने में वो लकड़ी इस्तेमाल हो रही है, जिसे कीड़ों ने काट डाला था. इसी तरह यूरोपीय देश ऑस्ट्रिया में भी लकड़ी का टॉवर बनाया जा रहा है. इसका नाम है होहो टॉवर. वहीं स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में भी लकड़ी की ऊंची बिल्डिंग बनाई जा रही है.

हालांकि बीमा कंपनियां इन प्रोजेक्ट से ख़ुश नहीं हैं, उन्हें लगता है कि ऐसी इमारतों का बीमा उनके लिए घाटे का सौदा हो सकता है. क्योंकि, ऐसी इमारतों की मज़बूती शक के दायरे में है. लेकिन कई आर्किटेक्ट हैं, जो ऐसे तजुर्बे करने में ज़रा भी नहीं डर रहे हैं.

वैसे भी ये कोई पहली बार नहीं है जब इंसान लकड़ी से इमारतें बनाने जा रहा है. जब से इंसान ने घर बनाना सीखा, तब शुरुआत ही लकड़ी से हुई थी. चीन का मशहूर सकयामुनी पगोडा दुनिया की सबसे पुरानी लकड़ी की इमारत है. इस पगोडा को डाओज़ोंग नाम के बादशाह ने क़रीब 900 साल पहले बनवाया था.

इसमें न तो एक भी पेंच लगा है और न ही कोई नट-बोल्ट. लेकिन इसकी बनावट इतनी शानदार है कि 900 साल बाद भी ये इमारत शान से खड़ी है. इस दौरान उस इलाक़े में कई भयंकर भूकंप आ चुके हैं. इनमें 1556 में आया वो ज़लज़ला भी शामिल है जिसने दस लाख से ज़्यादा लोगों की जान ली थी.

67 मीटर ऊंचा ये पगोडा आज दुनिया भर में लकड़ी से बनी सब से ऊंची इमारत है.

सदियों पहले कमोबेश हर देश में लकड़ी से इमारतें बनाई जाती थीं. वजह ये थी कि यही वो चीज़ थी जो आसानी से उपलब्ध थी. इग्लैंड में लकड़ी से घर, दफ़्तर, चर्च, कारखाने और महल बनाए जाते थे. लकड़ी बहुत मज़बूत होती है. अगर इसे जलने और सड़ने से बचाया जा सके, तो इससे अच्छा को बिल्डिंग मैटीरियल नहीं.

मुश्किल भरे माहौल में लकड़ी की इमारतें ही ज़्यादा बनाई जाती हैं. भारत का कश्मीर और पूर्वोत्तर का इलाक़ा इसकी मिसाल है. इन पर मुलम्मा चढ़ाकर लकड़ी की हिफ़ाज़त की जाती थी. लकड़ी की इमारतें थोड़ी ऊंचाई पर बनाई जाती थीं, ताकि पानी लगने से बुनियाद सड़ न जाए.

लकड़ी की इमारतें बनना तब बंद हुईं, जब आग से हादसे होने लगे. मध्य काल में इंग्लैंड से लेकर जापान तक हुए बड़े हादसों के बाद इंसान ने लकड़ी से मकान बनाना बंद कर दिया. 64 ईस्वी में रोम में भयंकर आग से बहुत सी इमारतें खाक हो गईं. ये आग 6 दिनों तक जलती रही थई1657 में जापान के एडो शहर में भयंकर आग से क़रीब एक लाख लोग मारे गए थे. एडो शहर ही आज का टोक्यो है. अमेरिका में न्यूयॉर्क, शिकागो, वॉशिंगटन और सैन फ्रांसिस्को में भी ऐसे ही हादसे हुए.

लंदन में 1666 में भयंकर आग लगी थी, जिसमें हज़ारों इमारतें तबाह हो गई थीं. इसके बाद से ही इमारतें बनाने में पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल ज़्यादा होने लगा था.

आज जिस लकड़ी से इमारतें बनाने की बात हो रही है, वो कोई पेड़ काटकर नहीं निकाली गई. ये लकड़ी फैक्ट्री में तैयार की जाती है. छोटे महीन टुकड़ों की परत बिछाकर लकड़ी तैयार होती है. इसमें सिर्फ़ लकड़ी नहीं होती. इसमें ग्लुलम नाम का केमिकल भी इस्तेमाल होता है. इनसे ही लकड़ी के खंबे तैयार होते हैं.

ऐसी लकड़ी पिछले पचास सालों से तैयार की जा रही है. इसके अलावा लैमिनेटेड विनीर लंबर या एलवीएल नाम की भी एक लकड़ी आजकल बनाई जा रही है, जो कंक्रीट के बराबर ही ताक़तवर होती है.

फैक्ट्री में तैयार होने वाली सबसे ताज़ा बिल्डिंग बनाने वाली लकड़ी है क्रॉस लैमिनेटेड टिंबर. इसे चमत्कारी टिंबर कहें तो ग़लत नहीं होगा. इसे ऐसी प्लाईवुड कहा जा रहा है, जिसे ताक़त बढ़ाने वाली दवाएं या स्टेरॉयड दिए गए हैं. ये लकड़ी स्टील के बराबर ही मज़बूत बताई जा रही है. ये गीली होने पर भी फूलती नहीं. इसे छह फुट लंबे और बीस इंच मोटे लट्ठों के तौर पर बनाया जाता है. और इसे ऐसे ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

अमरीका के वर्जिनिया में इस लकड़ी यानी सीएलटी की आग सहने की क्षमता परखी गई, तो ये स्टील पर भी बीस बैठी. आग लगने पर स्टील अक्सर पिघलने लगता है. मगर सीएलटी के साथ ऐसा नहीं होता. इसकी बाहरी परत झुलस जाती है. अंदर का हिस्सा महफ़ूज़ रहता है.

यानी आग लगने की सूरत में सीएलटी से बनी बिल्डिंग कंक्रीट और स्टील की इमारत से ज़्यादा देर तक टिकी रहेगी.

ऊंची इमारतों में आग लगने पर इसे बुझाना मुश्किल होता है. इसीलिए लकड़ी की इमारत अक्सर दस मंज़िल तक की ही होती है. आज की तारीख़ में लकड़ी की सबसे ऊंची इमारत कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में है. इसका नाम ब्रॉक कॉमन्स है.

ऊंची इमारतों के साथ मसला ये भी होता है कि उनका वज़न बहुत ज़्यादा होता है, जिसे संभालने की ताक़त बुनियाद में डालना ज़रूरी होता है. मगर लकड़ी की बिल्डिंग काफ़ी हल्की होंगी. फिर ये तेज़ तूफ़ानों की सूरत में कंक्रीट और स्टील की तरह ढहेंगी नहीं, क्योंकि लकड़ी में लोच होता है.

लकड़ी की बहुमंज़िला इमारतें बनाने की बड़ी चुनौती ये होती है कि लकड़ी के बड़े पैनल जोड़े कैसे जाएं. क्योंकि इतनी मोटी लकड़ी के पैनल नट बोल्ट या पेंच से तो जोड़े नहीं जा सकते. ऐसे में कई बार इन्हें स्टील या दूसरी किसी चीज़ से जोड़ना पड़ता है.

इसी लिए हम ये नहीं कह सकते कि कोई बहुमंज़िला इमारत या स्काईस्क्रैपर पूरी तरह से लकड़ी से बना है. स्काईस्क्रैपर कहलाने के लिए किसी भी इमारत का कम से कम 100 मीटर ऊंचा होना ज़रूरी है. आज की तारीख़ में लकड़ी की ऐसी कोई भी इमारत बनाने का प्लान नहीं है.

जानकार कहते हैं कि लकड़ी से इमारत बनाना क़ुदरत के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होगा. बहुत ऊंची इमारत बनाने पर ज़ोर देने के बजाय मज़बूत बिल्डिंग बनाने पर ज़ोर होना चाहिए, जो पर्यावरण को नुक़सान न पहुंचाए.

बीसवीं सदी कंक्रीट और स्टील की थी. इक्कीसवीं सदी कारखाने में तैयार हुई लकड़ी की होगी. यानी इतनी तरक़्क़ी करने के बाद इंसान एक बार फिर क़ुदरत की गोद में पनाह लेगा.

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