व्रत त्योहार

कब से प्रारंभ होने जा रहा है पितृ पक्ष , क्या है विधि विधान , क्या करना है वर्जित , आइए जानते है कैसे प्राप्त होगा पितरों का आशीर्वाद

कब से प्रारंभ होने जा रहा है पितृ पक्ष , क्या है विधि विधान , क्या करना है वर्जित , आइए जानते है कैसे प्राप्त होगा पितरों का आशीर्वाद

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही श्राद्ध पक्ष भी शुरू हो जाता है। श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष भी कहा जाता है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का महीना पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए होता है।

इस माह में पितरों को याद किया जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होने वाले पितृ पक्ष में पितरों को श्राद्ध और पिंडदान करने से परिवार में सुख समृद्वि और शांति आती है। इस वर्ष पितृ पक्ष का प्रारम्भ 17 सितंबर से हो रहा है।

पितृपक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ आदि नामों से भी जाना जाता है। गीता जी के अध्याय ९ श्लोक २५ के अनुसार पितर पूजने वाले पितरों को, देेव पूजने वाले देवताओं को और परमात्मा को पूजने वाले परमात्मा को प्राप्त होते हैं।अर्थात् मनुष्य को उसी की पूजा करने के लिए कहा है जिसे पाना चाहता है अर्थात समझदार इशारा समझ सकता है कि परमात्मा को पाना ही श्रेष्ठ है। अतः अन्य पूजाएं (देवी-देवता और पितरों की) छोड़ कर सिर्फ परमात्मा की पूजा करें।

आइए जानते हैं कि इस साल पितृ पक्ष किस तारीख से शुरू हो रहा है और श्राद्ध की प्रमुख तिथियां क्या रहेंगी।

पितृ पक्ष 2024 तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 17 सितंबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा। पूर्णिमा तिथि का समापन 18 सितंबर को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर होगा। पूर्णिमा श्राद्ध 17 सितंबर को किया जाएगा। वहीं प्रतिपदा तिथि की श्राद्ध तिथि 18 सितंबर को पड़ रही है। बता दें कि श्राद्ध पक्ष प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है, इसलिए 18 सितंबर से पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन और दान जैसे अन्य दूसरे कार्य किए जाएंगे। ऐसे में पितृ पक्ष का आरंभ 18 सितंबर से हो रहा है, जो कि 2 अक्तूबर 2024 तक चलेगा।

श्राद्ध की प्रमुख तिथियां
पितृ पक्ष प्रारंभ, पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर2024-

प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ)- 18 सितंबर-

द्वितीया तिथि का श्राद्ध- 19 सितंबर

तृतीया तिथि का श्राद्ध- 20 सितंबर

चतुर्थी तिथि का श्राद्ध- 21 सितंबर

पंचमी तिथि का श्राद्ध- 22 सितंबर

षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 23 सितंबर सोमवार

अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 24 सितंबर

नवमी तिथि का श्राद्ध- 25 सितंबर

दशमी तिथि का श्राद्ध- 26 सितंबर गुरुवार

एकादशी तिथि का श्राद्ध- 27 सितंबर

द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 29 सितंबर

त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 30 सितंबर सोमवार

चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर

सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष समाप्त- 2 अक्टूबर बुधवार

ऐसे करें पितरों का श्राद्ध (Shradh Vidhi)

पितृ पक्ष में सुबह जल्दी उठें और और स्नान कर जल में काले तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्पित करें।

पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण विधिपूर्वक करना चाहिए।

पितरों के लिए भोजन बनाएं और तर्पण करें। …

तर्पण करते समय पूर्व दिशा की तरफ मुख रखें।

अंत में पितरों को भोजन अर्पित करें।

श्राद्ध कर्म की सरल विधि का पालन कर पा सकेंगे पितरों का आशीर्वाद

1 .सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।

2 . घर आंगन में रंगोली बनाएं।

3. महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।

4. श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं।

5. ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।

6. पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें।

7 . गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें।

8. ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।

9 . ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

10. घर में किए गए श्राद्ध का पुण्य तीर्थ-स्थल पर किए गए श्राद्ध से आठ गुना अधिक मिलता है।

11. आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता लेकिन अपने पितरों की शांति के लिए वास्तव में कुछ करना चाहता है, तो उसे पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।

12. यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है।

13. हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।

14. यदि उपरोक्त में से कुछ भी संभव न हो तो किसी एकांत स्थान पर मध्याह्न समय में सूर्य की ओर दोनों हाथ उठाकर अपने पूर्वजों और सूर्य देव से प्रार्थना करनी चाहिए।

15. प्रार्थना में कहना चाहिए कि, ‘हे प्रभु मैंने अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिए हैं, मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं, मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो’। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

16. जो भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है।

पितृपक्ष में न करें ये काम

पितृ पक्ष में शादी-विवाह,गृह-प्रवेश, मुंडन संस्कार और सगाई समेत सभी मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। पितृपक्ष में अपशब्द,छल,कपट, ईर्ष्या और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। इस दौरान किसी का जाने-अनजाने में भी अपमान न करें। कहा जाता है इससे पितर नाराज हो जाता है।

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