*मुस्लिम महिलाओं की UCC के बाद जिंदगी रहेगी खुशहाल, यदि तलाक होता है तो भी मिलेगा बड़ा फायदा*
*मुस्लिम महिलाओं की UCC के बाद जिंदगी रहेगी खुशहाल, यदि तलाक होता है तो भी मिलेगा बड़ा फायदा*

समान नागरिक संहिता लागू यानी यूसीसी होने के बाद एक तरफ मुस्लिम महिलाओं को निकाह हलाला, इद्दत, तीन तलाक जैसी मुसीबतों से निजात मिलेगी. वहीं, कानूनन तलाक लेने पर अब उन्हें मेंटेनेंस के तौर पर हर महीने आर्थिक फायदा भी मिलेगा. विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर किसी की एक से ज्यादा बीवियां हैं तो हर तलाक लेने वाली पत्नी को इसका फायदा मिलेगा.
उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने से मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की हकदार हो गई हैं.
उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने से मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की हकदार हो गई हैं.
देश के दो राज्यों गोवा और उत्तराखंड में समान नगारिक संहिता यानी यूसीसी लागू हो गई है. जहां गोवा में काफी समय से यूसीसी लागू थी. वहीं, उत्तराखंड में इसे हाल में लागू किया गया है. उत्तराखंड में यूसीसी लागू के बाद हिंदू और मुसलमानों समेत सभी धर्म के पर्सनल लॉ बेअसर हो गए हैं. इससे अब यहां मुस्लिम महिलाओं को निकाह हलाला, इद्दत, खुला जैसे इस्लामी कानूनों से छुटकारा मिल गया है. यही नहीं, तलाक होने पर अब वे कानून के मुताबिक गुजारा भत्ता की हकदार भी होंगी.
कानून के जानकारों का कहना है कि अगर किसी मुस्लिम पुरुष की एक से ज्यादा बीवियां हैं तो हर तलाक लेने वाली पत्नी अलग गुजारा भत्ता की हकदार होगी. विधि विशेषज्ञों के मुताबिक, सीआरपीसी में तलाक के बाद गुजारा भत्ता को लेकर व्यवस्था दी गई हैं. दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी 1973 की धारा-125 पत्नी, बच्चे और माता-पिता के भरणपोषण से जुड़ी हुई है. इसके मुताबिक, पर्याप्त साधनों वाले व्यक्ति को अपना भरणपोषण करने में असमर्थ पत्नी को मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जा सकता है.
किन बच्चों को देना पड़ेगा गुजारा भत्ता
सीआरपीसी की धारा-125 कहती है कि पूर्व पति को शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम अपनी विवाहित-अविवाहित धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान को भी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जा सकता है. इसमें सिर्फ विवाहित बेटी के मामले में छूट मिलती है. वहीं, धारा-125 के तहत पर्याप्त साधन वाले सक्षम बेटे को अपना भरणपोषण करने में असमर्थ माता-पिता को मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जा सकता है. आदेश में प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट मासिक भुगतान की दर अपनी समझ के मुताबिक तय कर सकता है.
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सीआरपीसी की धारा-125 में तलाक के बाद पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता के बारे में बताया गया है.
कोर्ट कब अंतरिम भत्ते का आदेश देगा
मजिस्ट्रेट धारा-125 के तहत भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते के संबंध में मुकदमे के लंबित रहने के दौरान पति को आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या संतान, पिता या माता के अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ता दे. जब तक मुकदमा चलता है, तब तक पति कोर्ट की ओर से तय रकम पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर अदा करेगा. बता दें कि अगर महिला तलाक के बाद दूसरी शादी कर लेती है तो पूर्व पति उसे गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं रहेगा.
आदेश का पालन नहीं करने पर क्या होगा
अगर व्यक्ति आदेश का अनुपालन करने में ठोस कारण के बिना असफल रहता है तो मजिस्ट्रेट वारंट जारी कर सकता है. साथ ही उस पर जुर्माना भी लगा सकता है. यही नहीं, उसे जेल की सजा भी दे सकता है. कोई पत्नी अगर वह जारता की दशा में रह रही है तो अपने पति से यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए भत्ता व कार्यवाही के खर्च प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी. वहीं, अगर कोई पत्नी पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या दोनों आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं तो पति से भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए खर्च पाने की हकदार नहीं होगी. मजिस्ट्रेट अपने गुजारा भत्ता देने के पूर्व के आदेश को इन्हीं आधारों पर रद्द भी कर सकता है.
कैसे खुशहाल होगी मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी
उत्तराखंड में मुस्लिम पर्सनल लॉ खत्म होने और यूसीसी लागू होने के बाद मुस्लिम महिलाएं तलाक होने पर पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं. दरअसल, उत्तराखंड में सभी धर्मों के पर्सनल लॉ खत्म होने के बाद भारतीय कानूनों के मुताबिक फैसले होंगे. ऐसे में मुस्लिम महिलाएं तलाके बाद अपने और बच्चों के भरणपोषण के लिए गुजारा भत्ता पाने की हकरदार हो गई हैं. बता दें कि इस्लाम में तलाक के बाद महिलाओं को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की कोई व्यवस्था नहीं है. अब जब उन्हें गुजारा भत्ता मिलेगा तो तलाक के बाद उन्हें आर्थिक तौर पर कुछ राहत रहेगी. कोर्ट भत्ते की रकम पति की आय, संपत्ति और जिम्मदारियों को देखते हुए तय करता है.