कभी साइकिल पर ले जाते थे रॉकेट, आज NASA भी ज्वाइंट मिशन पर काम करने को बेकरार, चंद्रयान-3 लॉन्च करने वाले ISRO के बारे में जानें
कभी साइकिल पर ले जाते थे रॉकेट, आज NASA भी ज्वाइंट मिशन पर काम करने को बेकरार, चंद्रयान-3 लॉन्च करने वाले ISRO के बारे में जानें


कभी साइकिल पर ले जाते थे रॉकेट, आज NASA भी ज्वाइंट मिशन पर काम करने को बेकरार, चंद्रयान-3 लॉन्च करने वाले ISRO के बारे में जानें
भारत ने इतिहास रचने की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन, चंद्रयान-3 सफलता पूर्वक लॉन्च कर दिया है। चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने और एक रोवर तैनात करने का प्रयास करेगा। सफल होने पर, भारत चंद्रमा पर उतरने वाले विशिष्ट देशों में से एक बन जाएगा। केवल तीन देश संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ही इस उपलब्धि को हासिल कर पाए हैं। इसरो वैज्ञानिकों ने प्रक्षेपण यान से उपग्रह के सफल पृथक्करण की घोषणा की। उपग्रह को अब चंद्रमा की यात्रा शुरू करने के लिए वांछित कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। चंद्रयान 3 के कक्षा में सफल प्रक्षेपण के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में जश्न मनाया गया।
सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो चीफ ने क्या कहा
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ का कहना है कि चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी है। हमारे प्रिय एलवीएम3 ने पहले ही चंद्रयान-3 यान को पृथ्वी के चारों ओर सटीक रूप से स्थापित कर दिया है…आइए हम चंद्रयान-3 यान को आगे की कक्षा में आगे बढ़ने और आने वाले दिनों में चंद्रमा की ओर यात्रा करने के लिए शुभकामनाएं दें। इसरो का कहना है कि चंद्रयान-3 ने अपनी सटीक कक्षा में चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी है।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव बेहद ही प्राचीन
वैसे तो कहा जाता है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव बहुत ही पुराना है। भारतीय धार्मिक पौराणिक कथाओं में अंतरिक्ष अनुसंधान और परिभ्रमण की कई कहानियां दर्ज हैं। एक जगह लिखा गया है कि राम के पिता दशरथ चन्द्रमा से मिलने गए थे। इसके अलावा आधुनिक विश्व में भी भारत ने ही इस तकनीक से दुनिया को परिचित कराया। 1947 में अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों ने भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग एवं अनुसंधान एवं विकास की योजना बनाई और उस पर काम प्रारंभ किया।
डॉक्टर विक्रम साराभाई और डॉक्टर रामानाथन ने 16 फरवरी 1962 को Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की, जो आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) बन गया। उस समय जिस रॉकेट को प्रक्षेपित किया गया था, उसे साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक ले जाया गया था। यानी सुविधा नहीं थी, लेकिन कहते हैं ना कि इरादों में दम हो तो चट्टानों से भी पानी निकाला जा सकता है।
100 से भी ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च
इसरो ने देश के लिए कुल 101 सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। जिनमें संचार, आपदा प्रबंधन, इंटरनेट, रक्षा, मौसम, शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों को सेवाएं देने वाले उपग्रह हैं। इसरो के वैज्ञानिकों ने आजादी के बाद से अब तक संचार व्यवस्था को लेकर 41 उपग्रह छोड़े। जिनमें से अभी 15 काम कर रहे हैं। ये 15 सैटेलाइट हैं- INSAT-3A, 3C, 4A, 4B, 4CR और इसी प्रणाली के अंदर आने वाले GSAT-6, 7, 8, 9, 10, 12, 14, 15, 16 और 18।
मंगलयान, मंगलयान फेहरिस्त लंबी
22 अक्टूबर 2008 को भारत ने मंगलयान प्रथम का सफल परीक्षण किया। 5 नवम्बर 2013 को मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। 24 सितंबर 2014 को मंगलयान (प्रक्षेपण के 298 दिन बाद) मंगल की कक्षा में स्थापित भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी-डी5) का सफल प्रक्षेपण (5 जनवरी 2014), आईआरएनएसएस-1बी (04 अप्रैल 2014) व 1 सी (16 अक्टूबर 2014) का सफल प्रक्षेपण, जीएसएलवी एमके-3 की सफल पहली प्रायोगिक उड़ान (18 दिसंबर 2014) में की गई। 15 फरवरी, 2017 को इसरो ने दुनिया को चौंका दिया था। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड से भारत ने अंतरिक्ष में 104 सैटलाइट्स छोड़े थे। अब इसरो चंद्रयान-3 को सफलता पूर्वक लॉन्च किया है।

