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भाजपा का पलटवार, कांग्रेस को सनातन परंपरा से नफरत, इसलिए गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने का कर रही विरोध

भाजपा का पलटवार, कांग्रेस को सनातन परंपरा से नफरत, इसलिए गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने का कर रही विरोध

गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। यह पुरस्कार ‘अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’ के लिए दिया जाता है। हालांकि, इसको लेकर राजनीतिक दंगल भी शुरू हो गया है। कांग्रेस ने सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। जबकि भाजपा ने देश की सबसे पुरानी पार्टी पर पलटवार किया है। भाजपा ने साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस इस मामले को लेकर सवाल इसलिए खड़े कर रही है क्योंकि वह सनातन परंपरा से नफरत करती है।

भाजपा का कांग्रेस पर प्रहार
भाजपा ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन का संदेश फैला रहा है। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस को ‘हिन्दू विरोधी’ करार दिया और लोगों से सवाल किया कि गीता प्रेस पर उसके हमले से क्या कोई हैरान है। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि अगर इसे “xyz प्रेस” कहा जाता तो वे इसकी सराहना करते लेकिन क्योंकि यह गीता है – कांग्रेस को समस्या है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है; जाकिर नाइक शांति का मसीहा है लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है।

कांग्रेस ने प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारा
अपना हमला जारी रखते हुए शहजाद पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस कर्नाटक में गोहत्या चाहती है। कांग्रेस ने कभी गीता जी की तुलना जिहाद से की थी – शिवराज पाटिल का बयान याद रखें। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने प्रभु श्री राम के अस्तित्व को नकारा और राम मंदिर का विरोध किया। कांग्रेस गीता प्रेस से नफरत करती है क्योंकि वह सनातन के संदेश को कोने-कोने में फैला रही है।

कांग्रेस ने क्या कहा था
ट्विटर पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 देना सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने जैसा होगा। उन्होंने तर्क दिया कि एक लेखक अक्षय मुकुल ने ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ नामक एक जीवनी लिखी थी। रमेश ने कहा कि किताब मुकुल के महात्मा गांधी के साथ ‘तूफानी’ संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का पता लगाता है. यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। हालांकि, कांग्रेस में भी इसको लेकर राय बंटी हुई नजर आ रही है। यूपी कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि जयराम रमेश को ऐसे बय़ान नहीं देना चाहिए था।

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