Kakori Train Action: जब पंजाब मेल को रोककर क्रांतिकारियों ने उड़ा दी ब्रिटिश हुूकूमत की नींद
Kakori Train Action: जब पंजाब मेल को रोककर क्रांतिकारियों ने उड़ा दी ब्रिटिश हुूकूमत की नींद

आज अगर हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं तो इसमें हमारे देश के वीर क्रांतिकारियों के बहुत बड़ा योगदान है। हमारे देश के कई वीर क्रांतिकारियों ने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। अलग अलग समय पर अंग्रेजों के खिलाफ हमारे क्रांतिकारियों ने कई घटनाओं को अंजाम दिया है। इसलिए आज हम आपको ऐसी महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताएंगे जिसने अंग्रेजी हुकूमत को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था। ये घटना इतनी बड़ी थी कि अंग्रेज इस कांड के बाद डरने लगे थे और आनन फानन में अंग्रेजों ने वीर क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटका तो दिया लेकिन इसका खौफ उनके दिल मे हमेशा के लिए बना रह गया।
देश के इतिहास में काकोरी कांड एक बेहद ही महत्वपूर्ण घटना है। इस कांड का उद्देश्य अंग्रेजी शासन के विरूद्ध सरकारी खजाना लूटना और उन पैसों से हथियार खरीदना था। इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी। लेकिन यही वो घटना है जिससे देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने का काम किया। 9 अगस्त की तारीख का संबंध काकोरी ट्रेन एक्शन से है। इसी दिन रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान और उनके सात साथियों ने मिलकर काकोरी की घटना को अंजाम दिया था। इस कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है।
काकोरी ट्रेन एक्शन घटना क्या थी?
अगस्त 1925 में काकोरी में ट्रेन डकैती एचआरए की पहली बड़ी कार्रवाई थी। 8 नंबर की डाउन ट्रेन शाहजहाँपुर और लखनऊ के बीच चलती थी। उसमें रखा अंग्रेजों का जो खजाना क्रांतिकारियों ने लूटने की योजना बनाई, जिसे वे वैसे भी वैध रूप से भारतीयों का मानते थे। उनका उद्देश्य एचआरए को निधि देना और अपने काम और मिशन के लिए जनता का ध्यान आकर्षित करना दोनों था। ये उस दौर में ये अंग्रेजों के खिलाफ एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था। जिस जगह पर इस ट्रेन को रोककर इसका खजाना लूटा गया था। उस जगह का नाम काकोरी है।
19 दिसंबर को दी गई फांसी
क्रांतिकारी संगठन के दस सदस्यों से काकोरी स्टेशन से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन में प्रवेश किया। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से आगे चली। बिस्मिल ने ट्रेन की चेन खींच दी। चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ भी ट्रेन में मौजूद थे। अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों को ही मिली चुनौती से वे परेशान हो गए थे। करीब 50 गिरफ्तारियां की गई। इसके बाद दिसंबर 1927 में क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई।