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बड़ी आईटी कंपनियों में छँटनी ने तोड़ दिया युवाओं का सिलिकॉन वैली में काम करने और बसने का सपना

बड़ी आईटी कंपनियों में छँटनी ने तोड़ दिया युवाओं का सिलिकॉन वैली में काम करने और बसने का सपना

बड़ी आईटी कंपनियों में छँटनी ने तोड़ दिया युवाओं का सिलिकॉन वैली में काम करने और बसने का सपना
बड़ी आईटी कंपनियां हमेशा खबरों में रहती हैं। आमतौर पर आपने देखा होगा कि कोई आईटी कंपनी अपना नया गैजेट ला रही होती है या फिर कोई बेहतरीन फीचर वाला साफ्टवेयर ला रही होती है या कोई कंपनी ऐसी चमत्कारिक चीज ला रही होती है जिसके बारे में समाचार काफी समय तक सुर्खियों में रहते हैं। उपभोक्ता भी बड़ी आईटी कंपनियों के आने वाले उत्पाद हासिल करने को लेकर काफी उत्सुक रहते हैं। इसके अलावा युवाओं के बीच भी वैश्विक आईटी कंपनियों में काम करने को लेकर काफी उत्सुकता देखी जाती है क्योंकि टेक कंपनियों में तनख्वाह बहुत अच्छी मिलती है साथ ही कई अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं। यही नहीं अक्सर टेक कंपनियों में काम करने के घंटे भी बेहद कम होते हैं और विदेश यात्रा का अवसर भी मिलता है, इसलिए युवा इन कंपनियों की ओर आकर्षित होते हैं। सिलिकॉन वैली जाकर काम करना युवाओं की पहली चाहत होती है।

लेकिन पिछले कुछ समय से आईटी सेक्टर में चल रहे छंटनी के दौर ने टेक कंपनियों के प्रति युवाओं के रुझान को घटाया है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, मेटा आदि जैसी बड़ी कंपनियों में तो नौकरियों में कटौती की ही जा रही है साथ ही कई ऐसी छोटी और मध्यम स्तर की आईटी कंपनियों ने भी भारी संख्या में नौकरियों में कटौती की है जिनका व्यवसाय काफी घट गया है। टि्वटर खरीदने के बाद एलन मस्क ने तो लगभग आधे से ज्यादा स्टाफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष में, सिर्फ बड़ी टेक कंपनियों द्वारा ही वैश्विक स्तर पर एक लाख से अधिक लोगों को नौकरी से निकाला गया है। यही नहीं, देखा जाये तो महामारी की समाप्ति के बाद से, अल्फाबेट (12,000 कर्मचारी), अमेज़ॅन (18,000), मेटा (11,000), ट्विटर (4,000), माइक्रोसॉफ्ट (10,000) और सेल्सफोर्स (8,000) सहित प्रमुख तकनीकी कंपनियों से बड़ी संख्या में कर्मचारियों को निकाल दिया गया है। इसके अलावा टेस्ला, नेटफ्लिक्स, रॉबिन हुड, स्नैप, कॉइनबेस और स्पॉटिफ़ सहित कई घरेलू आईटी कंपनियों के नाम भी कर्मचारियों की छंटनी करने वाली कंपनियों की सूची में शामिल हैं। बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में आईटी कंपनियों की ओर से छंटनी का यह सिलसिला और बढ़ाया जा सकता है।

आईटी कंपनियां छंटनी पर क्यों मजबूर हुईं उसका एक प्रमुख कारण कोरोना महामारी के दौरान अधिकांश देशों में लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में की गयी भर्ती को बताया जा रहा है। उदाहरण के लिए देखें तो लॉकडाउन के दौरान लोग गूगल के गूगल मीट या मेटा के वाट्सएप्प वीडियो कांफ्रेंसिंग उत्पाद या जूम मीटिंग आदि का बहुतायत में प्रयोग करने लगे। ऐसे में इन कंपनियों को रातोंरात बड़ी संख्या में श्रम बल की आवश्यकता पड़ी। रातोंरात प्रोडक्ट मैनेजर, डेवलपर और डिजाइनर आदि बड़ी संख्या में भर्ती किये गये लेकिन महामारी का दौर खत्म होते ही यह उत्पाद बेकार हो गये क्योंकि दुनिया पहले की तरह चलने लगी थी। ऐसे में आईटी कंपनियों के राजस्व पर इसका सीधा असर पड़ा। इसके अलावा आईटी कंपनियों के निवेशकों की तरफ से भी प्रबंधन पर दबाव डाला जाने लगा कि कंपनी की ग्रोथ में गिरावट और राजस्व नुकसान को तत्काल रोका जाये। ऐसे में खबरें आने लगीं कि कभी सुंदर पिचाई खुद गूगल कर्मचारियों को पत्र लिखकर उन्हें नौकरी से निकालने की मजबूरी बता रहे हैं तो कभी किसी अन्य टेक कंपनी का सीईओ किसी सोशल मीडिया मंच पर अपनी मजबूरियां साझा कर रहा है।

टेक कंपनियों में छंटनी के अन्य कारणों पर चर्चा करें तो कहा जा सकता है कि कई टेक कंपनियों को सर्वाधिक पैसा विज्ञापन के जरिए मिलता है। इसलिए, जब तक महामारी के आने से पहले धन आने का यह आसान रास्ता खुला था, तब तक कर्मचारियों पर खुले हाथ से खर्च किया जाता था। पिछले साल विज्ञापन राजस्व में कमी आई, जिसका कारण महामारी से उत्पन्न वैश्विक मंदी की आशंकाएं थीं। इसलिए छंटनी करना जरूरी हो गया था। हालांकि यह भी सवाल उठा कि इतनी बड़ी-बड़ी कंपनियां राजस्व में कमी होने के चलते छंटनी कर रही हैं लेकिन एप्पल ने कोई छंटनी आखिर क्यों नहीं की। इसका जवाब यह है कि एप्पल ने हाल के वर्षों में अपने कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि से परहेज किया और इसके परिणामस्वरूप उसे कर्मचारियों की संख्या को कम नहीं करना पड़ा।

छंटनी के इस दौर में जिन लोगों ने नौकरियां खोई हैं, उनके बारे में बताया जा रहा है कि अधिकांश मामलों में, नौकरी खोने वाले लोग उच्च शिक्षित और अत्यधिक योग्य लोग शामिल हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सेवाओं का उपयोग करते हुए कई टेक कंपनियों ने तकनीकी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है लेकिन नीचे के स्टाफ को बरकरार रखा है। हालांकि जिन लोगों की नौकरी गई है उनके पास रोजगार और स्वरोजगार के अवसर विभिन्न देशों में हैं क्योंकि उनके बॉयोडाटा में बड़ी कंपनियों में काम करने के अनुभव का उल्लेख है।

छंटनी से उद्योगों को क्या नुकसान होगा, यदि इस बात पर गौर करें तो एक चीज साफतौर पर उभर कर आती है कि बड़ी टेक कंपनियां अब भी बड़ी नियोक्ता हैं और उनके जो प्रचलित उत्पाद बाजार में हैं, उस पर चूंकि लोगों की निर्भरता बढ़ चुकी है, ऐसे में राजस्व बढ़ने पर यह कंपनियां तकनीकी विकास को आगे बढ़ाने के लिए वापस से अनुभवी लोगों की नियुक्तियां शुरू कर सकती हैं। जरूरत इस बात की है कि अनुभवी व्यक्ति तकनीक के बदलते स्वरूप से खुद को अपडेट रखें। अमेरिका में जिन भारतीयों की नौकरियां गयी हैं उन्हें तो स्वदेशी फर्मों ने यहां आकर काम करने का प्रस्ताव दे भी दिया है। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि मंदी के यह वैश्विक बादल जल्द छंटेंगे और दुनिया में पहले की तरह नौकरियों की बहार होगी।

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