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राहुल गांधी की भारत जोड़ो से इतर बिहार में आकार ले रही इन 3 राजनीतिक यात्राओं के क्या हैं सियासी मायने?

राहुल गांधी की भारत जोड़ो से इतर बिहार में आकार ले रही इन 3 राजनीतिक यात्राओं के क्या हैं सियासी मायने?

देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरुनानक से लेकर महात्मा गांधी और विनोबा भावे तक की पदयात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। महात्मा गांधी जब चला करते थे तो लोग जुड़ते चले जाते थे। वो कारवां इतना बड़ा हुआ करता था कि परिवर्तन की दिशा इस देश को आजादी में ले गई। लेकिन इससे इतर राजनीतिक दलों के नेताओँ की तरफ से भी पदयात्रा निकाली गई। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लोगों से संवाद बनाने निकली है या फिर अपनी पहचान बचाने निकली है, इसकी जवाब तो हमें आने वाले वक्त में मिल जाएगा। लेकिव कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ये भारत जोड़ो यात्रा इन दिनों चर्चा का विषय है। लेकिन आपको बता दें कि आंदोलन की भूमि बिहार में भी राजनीतिक यात्रा आकार ले रही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी समाधान यात्रा शुरू की है, जहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी पार्टी की हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा का नेतृत्व किया। चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिक उम्मीदवार बने प्रशांत किशोर पहले से ही राज्य में अपनी जन सुराज यात्रा निकाल रहे हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि नीतीश की पार्टी, जदयू और कांग्रेस बिहार में सहयोगी हैं। राज्य में तीन अभियानों के पीछे क्या है जहां विधानसभा चुनाव केवल 2025 में होंगे?

नीतीश कुमार को मिलेगा समाधान?

वर्षों से नीतीश ने बिहार में कई राजनीतिक यात्राएं की हैं। लेकिन इस बार ये काफी मायने में अलग है। अगस्त में भाजपा को छोड़कर राजद के साथ सरकार बनाने के बाद वह अपनी समाधान यात्रा निकाल रहे हैं। नीतीश ने अपनी यात्रा ऐसे वक्त में शुरू करने का प्लान बनाया है जब एक बरस बाद ही जब देश अपनी नई सरकार चुनने के लिए मतदान करेगा। इसके अलावा नीतीश को कई मोदी विरोधी नेताओं के साथ उनकी बैठकों के दौरान सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद भी ये कदम उठाया गया है। इसके अलावा सहयोगी राजद के साथ नीतीश के मनमुटाव की खबरें भी आ रही हैं। राज्य में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद से उन पर भी राजनीतिक दबाव भी है। 5 जनवरी को शुरू हुई अपनी समाधान यात्रा के माध्यम से नतीश 16 दिनों के पहले चरण में 18 जिलों को कवर करेंगे। नीतीश जनता की नब्ज को समझना चाहते हैं और नैरेटिव बदलना चाहते हैं। वह अपने सहयोगी की अदला-बदली से उठी आलोचना का भी मुकाबला करना चाहते हैं।

हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा

जबकि राहुल गांधी बिहार सहित कई राज्यों से गुजरे बिना भारत को “एकजुट” करने के मिशन पर हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस ने बिहार में हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा शुरू की है। हाथ पार्टी का चुनाव चिन्ह है। इस यात्रा का नेतृत्व बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद कर रहे हैं, जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी हिस्सा लिया और 7 किलोमीटर पैदल चले। अभियान 20 जिलों में 1,200 किमी को कवर करेगा। पहला चरण 5-10 जनवरी तक चलेगा। कांग्रेस बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन का हिस्सा है, लेकिन केवल जदयू और राजद के लिए एक हाशिए के खिलाड़ी के रूप में। सबसे पुरानी पार्टी अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। कांग्रेस राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिल रही प्रतिक्रिया से उत्साहित है और अब बिहार में अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है। राज्य पार्टी इकाई चाहती है कि राहुल गांधी किसी समय पटना में एक सभा को संबोधित करें।

प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा

प्रशांत किशोर ने अधिकांश दलों के साथ एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया है और अपनी कथित महत्वाकांक्षाओं के कारण उनसे अलग भी हो गए हैं। नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू उपाध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया और कांग्रेस में भी उनके जाने की अटकलें वास्विकता नहीं बन पाई। पीके 2 अक्टूबर से बिहार में राजनीति में अपने पूर्ण प्रवेश के अग्रदूत के रूप में देखी जाने वाली जन सुराज यात्रा पर हैं, नीतीश और राजद के उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर तीखे हमले कर रहे हैं। यात्रा का लक्ष्य राज्य के सभी जिलों में 3,000 किमी की दूरी तय करना है। इसमें कुछ 18 महीने लगेंगे।

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