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कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया, जिनकी हत्या के बाद भोजपुर से पटना तक मचा तांडव, CBI अब तक नहीं सुलाझा पाई मर्डर की गुत्थी

कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया, जिनकी हत्या के बाद भोजपुर से पटना तक मचा तांडव, CBI अब तक नहीं सुलाझा पाई मर्डर की गुत्थी

कौन थे ब्रह्मेश्वर मुखिया, जिनकी हत्या के बाद भोजपुर से पटना तक मचा तांडव,  CBI अब तक नहीं सुलाझा पाई मर्डर की गुत्थी

तारीख आज की ही थी 1 जून पर साल था 2012 सुबह के सवा चार बज रहे थे। बिहार के शाहबाद का भोजपुर जिला उसके खोपिरा गांव के निवासी ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह उर्फ मुखिया जिसे जल्दी उठने की आदत थी। वे सूर्योदय से पहले उठ जाया करते थे और मॉर्निग वॉक किया करते थे। 9 साल की लंबी जेल की सजा काटने के बाद बाहर आए मुखिया सुबह की सैर पर निकलते हैं और महज अपने घर से 200 मीटर की दूरी पर छह लोगों द्वारा उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जाती है। घटनास्थल पर ही ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह की मौत हो जाती है। इसके बाद का वो काला दिन बिहार के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है। मगध का क्षेत्र हो या शाहबाद का क्षेत्र तमाम जो उनके समर्थक थे वो 3 लाख से ज्यादा की संख्या में उनकी शवयात्रा में शरीक होते हैं। पुलिस प्रशासन पूरी तरह से उस दिन लाचार सी दिखती है।

मुखिया की हत्या से बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासत गर्मा गई। आरा समेत पटना, औरंगाबाद, जहानाबाद और गया जिला समेतत अन्य जगहों पर उपद्रव औऱ हिंसा देखने को मिली। आरा में सरकारी तंत्र को निशाने पर लिया गया। स्टेशन से लेकर सर्किट हाउस तक को आग के हवाले कर दिया गया। आरा में भीड़ ने तत्कालीन डीजीपी अभयानंद पर भी हमला बोलने की कोशिश की थी और उनपर हाथ तक उठा दिया था। बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठीकुर और पूर्व विधायक रामाधार शर्मा पर हमला हुआ। ऐसा लग रहा था मानो पूरा बिहार उस वक्त बेबस हो चुका था।

साल 1917 की बात है, उस वक्त ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया का जन्म भी नहीं हुआ था। लेकिन ये साल बेहद ही महत्वपूर्ण है। वजह है कि रणवीर चौधरी जिनके नाम पर रणवीर सेना की स्थापना होती है। वो वही व्यक्ति थे जो कि इंडियन आर्मी के थे और शाहबाद का जो भोजपुर का क्षेत्र है वहां राजपूतों का वर्चस्व था। उनके हाथों से जमीन छीनकर भूमिहारों को सुपर्द किया जाता है। रणवीर चौधरी उनका नाम था जिसे भूमिहारों का मसीहा माना जाता था। उन्हीं के नाम पर साल 1994 में रणवीर सेना की स्थापना होती है। 1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी से नक्सल आंदोलन शुरू होता है। बंगाल के जमींदारों की जमीन पर लाल झंडा गाड़ दिया जाता था। यहीं से नक्सल आंदोलन शुरू होता है जो बिहार पहुंचते-पहुंचते इतना भयानक रूप ले लेता है कि सिर्फ 1990 से साल 2002 के बीच में चार दर्जन से ज्यादा खूनी नरसंहार हो जाते हैं। जिसमें सभी तबके के लोग मारे जाते हैं। ब्रह्मेश्वर मुखिया का जन्म खोपिरा गांव में हुआ। वो अपने गांव के मुखिया थे। रणवीर सेना और मुखिया पर आरोप लगा कि बारा और सेनारी का बदला लेने के लिए 1997 की 1 दिसंबर को लक्ष्मणपुर बाथे में 58 लोगों को मौत के घाट उतारा गया। इसके बाद बथानी टोला समेत कुछ और नरसंहारों में भी रणवीर सेना पर आरोप लगे। 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से ब्रह्मेश्वर मुखिया को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। ब्रह्मेश्वर मुखिया को उस वक्त तक 277 लोगों की हत्या और उनसे जुड़े 22 अलग-अलग मामलों का आरोपी बनाया गया था। 9 साल जेल की सजा काटने के बाद आठ जुलाई 2011 को उनकी रिहाई हुई। जेल से छूटने के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया ने 5 मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और कहा कि वो मुख्यधारा में आकर अब किसानों के हित की लड़ाई लड़ेंगे।

ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के एक साल बाद जुलाई 2013 में सीबीआई ने इसकी प्राथमिकी दर्ज की। लेकिन हत्या की वजह और कातिलों को पकड़ना तो दूर सीबीआई अपराधियों का सुराग तक नहीं लगा पाई। सीबीआई की तरफ से इस केस की जांच शुरू करने के बाद कातिलों का सुराग पाने के लिए तीन-तीन बार 10 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की गई। इन वर्षों में छह बार इनाम के पोस्टर भी चिपकाए गए लेकिन जांच एजेंसी की उपलब्धि शून्य ही है।

 

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