Lohri 2024: लोहड़ी पर क्यों जलाई जाती है आग? जानें इस अग्नि पूजा का रहस्य और धार्मिक महत्व?
Lohri 2024: लोहड़ी पर क्यों जलाई जाती है आग? जानें इस अग्नि पूजा का रहस्य और धार्मिक महत्व?

Lohri 2024: लोहड़ी पर क्यों जलाई जाती है आग? जानें इस अग्नि पूजा का रहस्य और धार्मिक महत्व?
Lohri 2024 : लोहड़ी एक हर्षोल्लास भरे पर्व के रूप में उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में हिंदू और सिख समुदायों द्वारा मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दौरान खेतों में फसल लहलहाने लगती है। लोहड़ी का पर्व मनाने के लिए रात को लकड़ी का घेरा बनाकर आग जलाई जाती है, जिसे लोहड़ी कहा जाता है। यह अग्नि पवित्रता व शुभता का प्रतीक होती है। इस अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक आदि अर्पित किए जाते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं लोहड़ी पर आग क्यों जलाते हैं? आइए जानते हैं लोहड़ी के दौरान क्यों की जाती है अग्नि की पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व।
लोहड़ी शब्द ‘तिलोहड़ी’ यानी ‘तिल’ से आया है जिसका अर्थ है तिल और ‘रोरही’ का अर्थ है गुड़। इसीलिए इसे लोहड़ी कहा जाता है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन गुड़,गजक,तिल जैसे खाने की वस्तुएं अग्नि के देवता को चढ़ाए जाते हैं। लोहड़ी मुख्य रूप से उत्तरी भारत में किसान समुदाय द्वारा मनाई जाती है जिसमें वे अपनी कटी हुई फसलों को अग्नि देवता को अर्पित करते हैं। इस प्रकार,लोहड़ी फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन नए वर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है। इसके अलावा लोहड़ी सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है और उस दिन सर्दी अपने चरम पर होती है और उसके बाद सर्दी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस प्रकार, लोहड़ी की रात पारंपरिक रूप से वर्ष की सबसे लंबी रात होती है जिसे शीतकालीन संक्रांति के रूप में जाना जाता है।
लोहड़ी में अग्नि पूजा महत्व
लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण रात को जलाई जाने वाली आग है जिसे लोहड़ी कहा जाता है। लोहड़ी में जलने वाली आग अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन रात्रि में एक स्थान पर आग जलाई जाती है। सभी लोग इस आग के इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं। सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल,गुड़ आदि से बनी मिठाइयां अर्पित करते हैं। लोककथाओं के अनुसार लोहड़ी पर जलाए गए अलाव की लपटें लोगों के संदेश और प्रार्थनाओं को सूर्य देवता तक ले जाती हैं ताकि फसलों को बढ़ने में मदद मिल सके। बदले में सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद देते हैं। लोहड़ी के अगले दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
लोहड़ी पर क्यों जलाते हैं अग्नि
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी में अग्नि की परम्परा माता सती से जुड़ी मानी जाती है। कथाओं के अनुसार जब राजा दक्ष ने महायज्ञ का अनुष्ठान किया था,तब उन्होंने सभी देवताओं को बुलाया लेकिन शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन इसके बाद भी माता सती महायज्ञ में पहुंचीं। परन्तु वहां उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव की बहुत निंदा की जिससे आहत सती ने अग्नि कुंड में अपनी देह त्याग दी। कहते हैं कि यह अग्नि मां सती के त्याग को समर्पित है।