कानपुर के अनिरुद्ध से लेकर वृंदावन के प्रेमानंद महाराज तक… तस्वीरों में देखें विश्व विख्यात संत की कहानी
कानपुर के अनिरुद्ध से लेकर वृंदावन के प्रेमानंद महाराज तक... तस्वीरों में देखें विश्व विख्यात संत की कहानी

कानपुर के अनिरुद्ध से लेकर वृंदावन के प्रेमानंद महाराज तक… तस्वीरों में देखें विश्व विख्यात संत की कहानी
कानपुर के अनिरुद्ध से लेकर वृंदावन के प्रेमानंद महाराज तक… तस्वीरों में देखें विश्व विख्यात संत की कहानी
प्रेमानंद जी महाराज को भला आज कौन नहीं जानता है.उनके सत्संग को सोशल मीडिया पर करोड़ों की संख्या में लोग सुनते और देखते है.प्रेमानंद महाराज के सत्संग और दर्शन कार्यक्रमों में न कोई वीआईपी है और न ही किसी के लिए अलग विशेष प्रकार की व्यवस्था की जाती है. आइये जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के बारे में.
वृंदावन में रहने वाले स्वामी प्रेमानंद महाराज के इस समय करोड़ों भक्त है. उनके सत्संग को सोशल मीडिया पर करोड़ों की संख्या में लोग सुनते और देखते है . प्रेमानंद महाराज के सत्संग और दर्शन कार्यक्रमों में न कोई वीआईपी है और न ही किसी के लिए अलग विशेष प्रकार की व्यवस्था की जाती है. महाराज न कोई चमत्कार का दावा करते हैं और न ही कभी अन्य लोगों की तरह अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन करते हैं.
वृंदावन में रहने वाले स्वामी प्रेमानंद महाराज के इस समय करोड़ों भक्त है. उनके सत्संग को सोशल मीडिया पर करोड़ों की संख्या में लोग सुनते और देखते है . प्रेमानंद महाराज के सत्संग और दर्शन कार्यक्रमों में न कोई वीआईपी है और न ही किसी के लिए अलग विशेष प्रकार की व्यवस्था की जाती है. महाराज न कोई चमत्कार का दावा करते हैं और न ही कभी अन्य लोगों की तरह अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के छोटे से गांव अखरी में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था. उनके घर में शुरू से ही भक्ति का माहौल था उनके पिता और दादा गीता और भागवत का पाठ किया करते थे. जिसका प्रभाव प्रेमानंद के ऊपर भी पड़ा, उन्होंने 5 वीं कक्षा से ही गीता का पाठ शुरू कर दिया था.
प्रेमानंद महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के छोटे से गांव अखरी में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था. उनके घर में शुरू से ही भक्ति का माहौल था उनके पिता और दादा गीता और भागवत का पाठ किया करते थे. जिसका प्रभाव प्रेमानंद के ऊपर भी पड़ा, उन्होंने 5 वीं कक्षा से ही गीता का पाठ शुरू कर दिया था.
करीब 13 साल की उम्र में प्रेमानंद महाराज ने संन्यासी बनने का मन बना लिया और फिर एक दिन अचानक आधी रात को घर छोड़ कर संन्यासी बनने के लिए निकल पड़े और सीधे पहुंच गए बनारस. संन्यासी जीवन के शुरुआत में प्रेमानंद महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया था. बनारस में रहने के दौरान वह सिर्फ एक बार भोजन ग्रहण किया करते और साथ ही गंगा में तीन समय नियमित स्नान किया करते थे.
करीब 13 साल की उम्र में प्रेमानंद महाराज ने संन्यासी बनने का मन बना लिया और फिर एक दिन अचानक आधी रात को घर छोड़ कर संन्यासी बनने के लिए निकल पड़े और सीधे पहुंच गए बनारस. संन्यासी जीवन के शुरुआत में प्रेमानंद महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया था. बनारस में रहने के दौरान वह सिर्फ एक बार भोजन ग्रहण किया करते और साथ ही गंगा में तीन समय नियमित स्नान किया करते थे.
एक अपरिचित संत ने प्रेमानंद महाराज रासलीला के कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया. लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. प्रेमानंद जी महाराज जब रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया. आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी और उस संत ने संत उन्हें वृंदावन के बारे में बताया और वह वृंदावन आ गए.
एक अपरिचित संत ने प्रेमानंद महाराज रासलीला के कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया. लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. प्रेमानंद जी महाराज जब रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया. आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी और उस संत ने संत उन्हें वृंदावन के बारे में बताया और वह वृंदावन आ गए.
इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए. इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए. जिसके बाद उन्हें किसी ने राधाबलाभ मंदिर में दर्शन के लिए कहा और मंदिर में दर्शन करने के बाद वह भगवान के स्वरूप से मोहित हो गए और घंटों तक मंदिर में भगवान के दर्शन किया करते थे.
इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए. इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए. जिसके बाद उन्हें किसी ने राधाबलाभ मंदिर में दर्शन के लिए कहा और मंदिर में दर्शन करने के बाद वह भगवान के स्वरूप से मोहित हो गए और घंटों तक मंदिर में भगवान के दर्शन किया करते थे.
एक दिन राधाबलाभ मंदिर के सेवायत मोहित मराल गोस्वामी की नजर उन पर पड़ गई और गोस्वामी जी ने फिर उन्हें श्री हित हरिवंश महाप्रभु द्वारा रचित “श्री राधा रस सुधा निधि “का एक श्लोक सुनाया. प्रेमानंद जी को संस्कृत का भली भांति ज्ञान होने के बाद भी वह उस श्लोक का भाव नहीं समझ पाए. तब गोस्वामी जी ने उन्हें हित हरिवंश महाप्रभु के नाम का जाप और राधा नाम का जाप करने के लिए प्रेरित किया और फिर महाराज जी ने गोस्वामी जी से दीक्षा ली और तभी से आर्यन ब्राह्मचारी बने गोविंद शरण प्रेमानंद महाराज.
एक दिन राधाबलाभ मंदिर के सेवायत मोहित मराल गोस्वामी की नजर उन पर पड़ गई और गोस्वामी जी ने फिर उन्हें श्री हित हरिवंश महाप्रभु द्वारा रचित “श्री राधा रस सुधा निधि “का एक श्लोक सुनाया. प्रेमानंद जी को संस्कृत का भली भांति ज्ञान होने के बाद भी वह उस श्लोक का भाव नहीं समझ पाए. तब गोस्वामी जी ने उन्हें हित हरिवंश महाप्रभु के नाम का जाप और राधा नाम का जाप करने के लिए प्रेरित किया और फिर महाराज जी ने गोस्वामी जी से दीक्षा ली और तभी से आर्यन ब्राह्मचारी बने गोविंद शरण प्रेमानंद महाराज.
मोहित मराल गोस्वामी से दीक्षा लेने का बाद वह श्री हित हरि वंश संप्रदाय परंपरा का पालन करने लगे. धीरे-धीरे भागवत प्राप्ति के साथ-साथ स्वामी प्रेमानंद महाराज अन्य लोगो को भी राधा नाम जप करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे. उनके शिष्यों की संख्या बढ़ाने लगी और आज वह भारत के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक है. देश के कई बड़े सेलिब्रिटी, एक्टर, क्रिकेटर से लेकर राज नेता उनके दर्शन के वृंदावन आते है.