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कबाइलियों का हमला, राजा के हस्ताक्षर, 76 साल पुरानी वो कहानी, कैसे आज के दिन ही भारत का अभिन्न हिस्सा बना था कश्मीर

कबाइलियों का हमला, राजा के हस्ताक्षर, 76 साल पुरानी वो कहानी, कैसे आज के दिन ही भारत का अभिन्न हिस्सा बना था कश्मीर

26 अक्टूबर 1947, अमर पैलेस, जम्मू… “मैं महाराजा हरि सिंह जम्मू और कश्मीर को हिंदुस्तान में शामिल होने का ऐलान करता हूं।” इन लफ्जों के साथ महाराजा ने अपनी रियासत को हिंदुस्तान में शामिल होने के लिए एग्रीमेंट पर साइन कर दिया। लेकिन इसके साथ ही कश्मीर की समस्या का हल हो जाना चाहिए थे। पर क्या ऐसा हो पाया। नहीं, तो फिर इसके पीछे क्या वजहें रही होंगी। क्या है कश्मीर के विलय की कहानी आज आइए आपको बताते हैं। दरअसल, विलय दिवस के अवसर पर जम्मू कश्मीर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। इसी क्रम में जम्मू में गुरुवार सुबह मैराथन का आयोजन किया गया। इसमें युवा हाथों में तिरंगा थाम कर दौड़े। भारत माता की जय, वंदे मातरम आदि के जयघोष हर ओर गूंजे। मैराथन का आयोजन भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से किया गया। इसे दौड़ को ‘विलय दौड़ मैराथन’ नाम दिया गया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ने भी इसमें शामिल हुए।

कबायलियों का हमला

22 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी कबायलियों ने हमला बोल दिया। पाकिस्तान से घुसे कबायली लड़ाके तेजी से कश्मीर में आगे बढ़ रहे थे। कश्मीर में कत्लेआम मचा था। ये देखकर महाराजा हरी सिंह ने अपनी रियासत को बचाने के लिए भारत सरकार से मदद मांगी। जून 1947 का दौर जब न केवल ब्रिटिश भारत छोड़ रहे थे बल्कि भारत में भी नई व्यवस्था तैयार हो रही थी। हरि सिंह जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान से जोड़ना नहीं चाहते थे। महाराजा को अब भारत में अंग्रेजों से नहीं बल्कि पंडित नेहरू के साथ संबंध जोड़ना था और उनकी छत्रछाया में रहना था। दूसरी तरफ नेहरू महाराजा के फैसले लेने के अख्तियार पर ही सवाल उठा रहे थे। उनकी नजर में शेख अब्दुल्लाह ही जम्मू-कश्मीर के भविष्य का फैसला कर सकते थे, जिन्हें महाराजा हरि सिंह ने जेल में बंद करवा रखा था। बता दें कि शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरी सिंह के खिलाफ “क्विट कश्मीर” आंदोलन चलाया जिसके बाद महाराजा हरि सिंह ने 1946 में शेख अब्दुल्ला को जेल में बंद कर दिया था। शेख अब्दुल्ला के दादा कपड़े बुनने का काम करते थे और बाद में उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया। कश्मीर हमेशा ही पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए एक भावनात्मक प्रश्न था। कश्मीर पंडित नेहरू के दिल के करीब था इसलिए कश्मीर के नेताओं को भी पंडित नेहरू ने हमेशा अपने दिल के करीब रखा। शेख अब्दुल्ला कश्मीर के लोकप्रिय नेता थे और पंडित नेहरू से भी उनके रिश्ते थे। लेकिन जवाहरलाल नेहरू की दोस्ती का बदला मिजाज शेख अब्दुल्ला की राजनीति को रास नहीं आ रहा था। कश्मीर के मामले में जवाहरलाल नेहरू की कुछ गलतियों की वजह से कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का कद लगातार बढ़ता रहा। शेख वर्ष 1948 में जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री बन गए। शुरुआती दौर में नेहरू ने शेख अब्दुल्लाह का समर्थन किया। वर्ष 1953 में कई आरोपों के बाद शेख अब्दुल्ला को उनके पद से हटा दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया।

संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर

कश्मीर के महाराजा ने स्वतंत्रता की महत्वाकांक्षाओं को बरकरार रखते हुए की थी, लेकिन पाकिस्तान के हमले के बाद उन्होंने बिना शर्त विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे जिसे भारत के गवर्नर जनरल ने बिना शर्त स्वीकार कर लिया था। माउंटबेटन के 27 अक्टूबर 1947 को महाराजा को लिखे पत्र में राज्य के विलय की स्वीकृति की सूचना दी गई थी। ऐसा करते हुए, माउंटबेटन ने कहा कि भारत सामान्य परिस्थितियों की वापसी पर राज्य के लोगों की इच्छाओं का पता लगाएगा। 27 अक्टूबर 1947 को नेहरू ने कुछ दिनों पहले जम्मू और कश्मीर के नए प्रधान मंत्री के रूप में श्रीनगर पहुंचे मेहर चंद महाजन और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला को संयुक्त राष्ट्र को निगरानी में शामिल करने के अपने फैसले के बारे में बताया था। 3 नवंबर को, उन्होंने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को पत्र लिखते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसी निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय एजेंसी किसी भी जनमत संग्रह की निगरानी करने” के लिए कहने का निर्णय लिया गया था। चूंकि पाकिस्तान ने उस समय कश्मीर में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था और कहा था कि हमलावर कबायली आक्रमणकारी थे, यह भारत के लिए कश्मीर में पाकिस्तान की भूमिका को समाप्त करने का एक अवसर था।

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