मुजफ्फरनगर में स्कूल को चुनावी प्रयोगशाला बनाने पर तुले हैं विपक्षी दल
मुजफ्फरनगर में स्कूल को चुनावी प्रयोगशाला बनाने पर तुले हैं विपक्षी दल

मुजफ्फरनगर में स्कूल को चुनावी प्रयोगशाला बनाने पर तुले हैं विपक्षी दल
चिंगारी का खेल बुरा होता है। विशेष तौर पर जहां ज्वलनशील पदार्थ हो वहां चिंगारी जानलेवा हो सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हालात कुछ इसी प्रकार के हैं विशेष कर मुजफ्फरनगर। देश भूला नहीं है वर्ष 2013 में कवाल गांव में सचिन और गौरव की बहन के साथ छेड़खानी की घटना हुई थी जिसका विरोध करने पर सचिन और गौरव की पीट पीट कर हत्या हो गई। हत्यारों पर कार्रवाई ना किये जाने से आक्रोश उन्माद में तब्दील हो गया और एक ऐसा मामला जो मजबूत कानून व्यवस्था से रोका जा सकता था, सांप्रदायिक दंगे में बदल गया।
60 से अधिक लोगों की जान गई, सैंकड़ो लोगों के मकान जले, लोगों के रोजी रोजगार गए, हजारों लोगों को शरणार्थी जीवन बिताना पड़ा। दंगे की इस त्रासदी को हिंदू और मुसलमान दोनों ने झेला। मुजफ्फरनगर दंगे से आसपास के कई जिले प्रभावित हुए। तत्कालीन अखिलेश सरकार की मजहबी तुष्टिकरण की नीति ने दंगों की आग पर पानी डालने के बजाय पेट्रोल छिड़का। कर्फ्यू लगा, कई बेगुनाह जेल भेजे गए, भाजपा के दो विधायकों पर गलत ढंग से रासुका तामील करने की कोशिश की। इन सारे कारणों से बात बनने की बजाय और बिगड़ती गयी। वक्त सबसे बड़ा मरहम होता है, वक्त बीता और जख्म धीरे-धीरे सूखने लगे। उत्तर प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन भी हो गया।
योगी आदित्यनाथ के रूप में उत्तर प्रदेश में एक ऐसा सफल प्रशासक मिला जिसने मजहबी तुष्टिकरण की नीति को पूरी तरह से धूल-धूसरित कर दिया। कानून व्यवस्था के सख्त प्रभाव के कारण उत्तर प्रदेश से सांप्रदायिक दंगे पूरी तरह से समाप्त हो गए। ना केवल कांवड़ यात्रा में डीजे पर लगी रोक हटी बल्कि सुगम कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कर जनमानस का भरोसा भी जीता गया। बिना भेदभाव के मंदिर और मस्जिद दोनों से ध्वनि विस्तारक यंत्र हटवाए गए। समाज में भरोसा स्थापित हुआ कि अगर कोई गलत करेगा तो कानून बिना जाति मजहब की परवाह किए कठोरता से कार्रवाई करेगा। कानूनी कार्यवाही में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हुआ और इसके सफल परिणाम उत्तर प्रदेश की जनता ने महसूस किये। पिछले 6 वर्षों में उत्तर प्रदेश में किसी भी जिले में कर्फ्यू नहीं लगाना पड़ा। जहां किसी ने भी दंगा करने की चेष्टा की, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया, वहां ना केवल बुलडोजर चलाकर ऐसे दंगाइयों के हौसलों को ध्वस्त किया बल्कि नुकसान की वसूली कराकर एक नज़ीर स्थापित कर दी। इसी कारण से 2022 के विधानसभा चुनाव में कानून व्यवस्था का विषय उत्तर प्रदेश में सकारात्मक मुद्दे के तौर पर उभर कर सामने आया और यह योगी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बना।
लेकिन यह बात विपक्षी दलों को रास नहीं आ रही। इसीलिए विपक्षी दल हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की इस शांत फिजा में कैसे मजहबी रंग घोला जाये। सपा, बसपा और कांग्रेस ने अपने कई महारथियों को बाकायदा इस मिशन पर लगा रखा है जो लगातार अपनी बदजुबानी से सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का भरपूर प्रयास करते हैं। कभी हिंदू देवी देवताओं, साधु संतों, ग्रंथों और पुराणों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं तो कभी मुसलमानों को भी बरगलाने व भड़काने वाले बयान देते हैं। लेकिन विपक्ष के सभी प्रयास विफल हुए हैं, अफवाह तंत्र टूटा है। लेकिन विपक्ष है कि बाज ही नहीं आता।
मौजूदा मुजफ्फरनगर के घटनाक्रम में भी ऐसे ही अफवाह तंत्र का सहारा लिया जा रहा है। मुजफ्फरनगर के एक निजी पब्लिक स्कूल में घटित एक सामान्य-सी घटना पर पूरा विपक्ष एकजुट होकर हमलावर हो गया। मुजफ्फरनगर संवेदनशील है, 2013 के गहरे घाव उभरते के फिर प्रयास किये जा रहे हैं। विकलांग शिक्षिका की एक गलती के आवरण में फिर षड्यंत्र बुना जा रहा है। नई शिक्षा नीति के तहत क्लासरूम में बच्चों की पिटाई पूरी तरह प्रतिबंध की गई है। इस मामले में भी यह अपराध हुआ है। पिटने वाला छात्र है और पीटने वाले भी छात्र हैं। शिक्षिका के निर्देश पर छात्रों द्वारा छात्र की पिटाई को कोई भी वाजिब नहीं ठहरा सकता। यह कृत्य निंदनीय है और दंडनीय भी। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के कई तथ्यों को जानबूझकर छिपाने का प्रयास किया गया। मसलन वायरल वीडियो पिटने वाले छात्र के चाचा नदीम द्वारा ही बनाया जा रहा है। पीटने वाले छात्र हिंदू और मुसलमान दोनों ही हैं। होमवर्क पूरा ना करने और पढ़ाई में लापरवाही करने पर बच्चे को टाइट करने का आग्रह पिटने वाले बच्चे के परिजनों के द्वारा ही किया गया था। बावजूद इसके बच्चों की पिटाई को किसी भी स्थिति में न्यायोचित नहीं माना जा सकता, यह बात अलग है कि पढ़ाने वाले शिक्षकों ने अपनी पढ़ाई के दौरान अपने शिक्षकों से पिटाई झेली है। लेकिन इस पूरे मामले में कोई मजहबी एंगल नहीं था। इससे पहले भी पूरे गांव में कभी भी किसी ने मजहबी भेदभाव की कोई शिकायत नहीं की है जबकि विद्यालय में दोनों ही मजहब के विद्यार्थी पढ़ते हैं। चिंगारी का खेल खेलने वालों के लिए इस बार विद्या का मंदिर स्कूल चुनाव की प्रयोगशाला बन गया है।