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एमपीसी सदस्य ने कहा- सख्त मौद्रिक उपायों का असर 5-6 तिमाहियों के बाद दिखेगा

एमपीसी सदस्य ने कहा- सख्त मौद्रिक उपायों का असर 5-6 तिमाहियों के बाद दिखेगा

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा ने सोमवार को कहा कि मौद्रिक नीति में सख्ती का मुद्रास्फीति पर प्रभाव पांच-छह तिमाहियों के बाद नजर आने लगेगा। मौद्रिक नीति पर निर्णय करने वाली सर्वोच्च संस्था एमपीसी इस साल चार बार नीतिगत दर में बढ़ोतरी कर चुकी है। इस दौरान रेपो दर में कुल 1.90 प्रतिशत की वृद्धि की जा चुकी है और अब यह 5.90 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। बढ़ती मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने नकदी को सीमित करने की रणनीति बनाई है और उसी के अनुरूप नीतिगत ब्याज दर में लगातार वृद्धि की जा रही है।

आरबीआई को सरकार ने मुद्रास्फीति दो प्रतिशत की घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत तक सीमित रखने के लिए कहा हुआ है। लेकिन इस साल जनवरी से ही मुद्रास्फीति लगातार तय दायरे से ऊपर बनी हुई है। इस बारे में पूछे जाने पर वर्मा ने पीटीआई-से कहा कि मौद्रिक नीतियों में सख्ती से मुद्रास्फीति निश्चित रूप से कम होगी। उन्होंने कहा, इस सख्ती का अपना असर होगा। आप जानते हैं कि मौद्रिक नीतिगत उपायों का असर आने में पांच-छह तिमाहियां लगती हैं और कीमतों में कमी आती है। उन्होंने कहा, इस दिशा में हमने अप्रैल से प्रयास शुरू किए थे।

हमें साल के आखिर में उस सख्ती के असर नजर आने लगेंगे। भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), अहमदाबाद में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत वर्मा ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि असल में पिछले कई वर्षों से दबी हुई है। उन्होंने कहा, हमें मंदी की आशंका नहीं सता रही है लेकिन वृद्धि भी वैसी नहीं है जैसी हम चाहते हैं। विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर को एक प्रतिशत घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने वर्ष 2022 में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।

इस संदर्भ में वर्मा ने कहा कि भारत के लिए यह एक दोहरी चुनौती है। उन्होंने कहा, आर्थिक वृद्धि हमारे अनुमान से कम है जबकि मुद्रास्फीति संतोषजनक स्तर से अधिक है। यह मौद्रिक नीति के समक्ष एक मुश्किल चुनौती पेश करती है। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति फिलहाल मुद्रास्फीति पर काबू पाने को प्राथमिकता दे रही है और उसे नीचे लाने के बाद अगले कदम के बारे में फैसला किया जाएगा।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती स्थिति के बारे में पूछे जाने पर वर्मा ने कहा कि डॉलर लगभग सभी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। हालांकि उन्होंने कहा कि मजबूत डॉलर की तुलना में खतरा तब कहीं ज्यादा है जब रुपया कमजोर है। गिरते रुपये को संभालने के लिए कदम उठाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, मेरी निजी राय है कि डॉलर के मजबूत होने पर हमारा उससे निपटने का तरीका उस स्थिति से अलग होगा जब रुपया कमजोर हो। ये दोनों एकदम अलग परिघटना हैं जिनके लिए अलग प्रतिक्रिया की जरूरत होती है। डॉलर के मुकाबले रुपया इस साल करीब आठ प्रतिशत कमजोर हुआ है। रुपया 82.30 प्रति डॉलर के भाव पर पहुंच गया है।

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