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अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच हुए सीमा समझौता के सियासी मायने को ऐसे समझिए

अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच हुए सीमा समझौता के सियासी मायने को ऐसे समझिए

अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच हुए सीमा समझौता के सियासी मायने को ऐसे समझिए
पूर्वोत्तर के दो प्रमुख राज्यों, अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच गुरुवार को हुए सीमा समझौता के अहम सियासी मायने हैं, जो न केवल पूर्वोत्तर के पांच अन्य राज्यों बल्कि पूरे मुल्क की सियासत को गहरे तक प्रभावित करेंगे। जिस तरह से सियासत के चाणक्य अमित शाह ने दशकों से चले आ रहे इस विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाया है, उससे उनका राजनैतिक कद थोड़ा और ऊंचा उठा है। ऐसा इसलिए कि अपने गृह मंत्रित्व काल में उन्होंने जिस संजीदगी के साथ जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर के सात बहन राज्यों के लिए नासूर समझी जाने वाली विभिन्न समस्याओं के सकारात्मक हल यानी निदान निकाले हैं, उसका सकारात्मक असर भारतीय राजनीति में महसूस किया जा रहा है। इससे देश की छवि भी बदली है और समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के सशक्त मार्गदर्शन में पिछले 9 वर्षों में पूर्वोत्तर की लगभग सभी समस्याओं का समाधान निकाल कर समग्र शांति और अतुलनीय विकास के एक नए युग का सूत्रपात किया गया है। इसी की एक मजबूत कड़ी के तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को खत्म करते हुए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, केंद्रीय गृह सचिव और केंद्र व दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी ने इस अवसर को यादगार बना दिया।

गौरतलब है कि आजादी के बाद 1972 से लेकर आज तक जिस 800 किमी लंबी असम-अरुणाचल सीमा विवाद को किसी भी सरकार ने सुलझाने की कोशिश नहीं की। दोनों राज्यों के बीच 123 गांवों को लेकर विवाद था, जिसपर अरुणाचल प्रदेश ने दावा किया था। हालांकि, अभी जिन 71 गांवों की स्थिति को लेकर जो स्पष्ट सहमति बनी है, इसमें से 10 गांव असम में ही बने रहेंगे। वहीं 60 गांव असम से लेकर अरुणाचल में शामिल किए जाएंगे। वहीं, 1 गांव अरुणाचल प्रदेश से लेकर असम में शामिल किया जाएगा। कहने का तातपर्य यह कि 60 गांव अरुणाचल प्रदेश को मिले, जबकि 11 गांव असम को। शेष बचे 52 गांवों में से 49 गांव की सीमाएं अगले छह महीनों में क्षेत्रीय समितियों द्वारा तय की जाएंगी। इसके अतिरिक्त, अब दोनों पक्ष कोई नया दावा नहीं करेंगे। इसप्रकार उस ऐतिहासिक विवाद को निपटाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि वो वास्तव में भारतीय राजनीति के चाणक्य हैं और शह-मात के खेल में वो जो नायाब संतुलन साधते हैं, उसका कोई दूसरा सानी नहीं।

बता दें कि 50 से अधिक बार पूर्वोत्तर के सात बहन राज्यों का दौरा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित पूर्वोत्तर, शांत पूर्वोत्तर और विवाद मुक्त पूर्वोत्तर के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में निरंतर जुटे उनके हनुमान यानी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में 2019 में एनएलएफटी समझौता, 2020 में ब्रू समझौता, 2021 में बोडो समझौता, 2022 में कार्बी समझौता, आदिवासी शांति समझौता, असम-मेघालय के 67 प्रतिशत अंतरराज्यीय सीमा विवाद का समझौता और 20 अप्रैल 2023 को 800 किमी लंबे असम-अरुणाचल सीमा के निपटारे से पूरे पूर्वोत्तर का कायाकल्प हो रहा है। यह हर भारतवासी के लिए गर्व और गौरव दोनों के विषय हैं।

आँकड़ों के मुताबिक संकल्प से सिद्धि के 9 सालों में ही पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की नीतियों के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में 8000 से ज्यादा उग्रवादी युवा अपने हथियार छोड़कर देश/प्रदेश की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। खास बात यह कि पूरे पूर्वोत्तर में हिंसा में लगभग 67 फीसदी की कमी आई है। वहीं, सुरक्षा बलों के मृत्यु में 60 फीसदी की कमी और नागरिकों की मृत्यु में 83 प्रतिशत की कमी आई है। जहाँ असम के 70 प्रतिशत क्षेत्र, मणिपुर के 6 जिले के 15 पुलिस स्टेशन और नागालैंड के सात जिलों को अफ्सपा से मुक्त कर दिया गया है, वहीं त्रिपुरा और मेघालय को पूरी तरह से अफ्सपा से मुक्त कर दिया गया है, जो यह साबित करता है कि देश अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है और आने वाला कल सुख-शांति-समृद्धि प्रदायक साबित होगा।

देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नए भारत के निर्माण में जुटे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अथक प्रयासों और कुशल रणनीतियों का ही यह तकाजा है कि समग्र पूर्वोत्तर में आधारभूत संरचना विकास (इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट) और औद्योगिक निवेश सहित सीमा से सटे गाँवों का चौतरफा विकास वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक ठीक ही बताते हैं कि आजादी के बाद ही जिस समस्या का समाधान हो जाना चाहिए था, उसका समाधान आज 75 साल के बाद एक सख्त गृह मंत्री समझे जाने वाले अमित शाह के दिशा-निर्देश में गृह मंत्रालय कर रहा है। शायद इसलिए कहा जाता है कि सियासत में जो यश आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को प्राप्त हो रहा है, वह देश के पहले उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के अलावा शायद ही किसी को मिला हो। इस बात को समझने और समझाने की जरूरत है, ताकि सदियों बाद देश को मिले मजबूत व निर्णायक नेतृत्वकर्ताओं के बारे में आमलोगों के बीच जो गलतफहमियां परोसी जा रही हैं, उससे निजात मिल सके और नेतृत्व यथावत गतिमान रहे, ताकि यह राष्ट्र निरन्तर मजबूत होता रहे।

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