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Krishna Janmashtami 2023: नंदगांव में रोहणी नक्षत्र में नहीं मनाते जन्माष्टमी, पढ़िए यहां कब जन्मेंगे कन्हाई

Krishna Janmashtami 2023: नंदगांव में रोहणी नक्षत्र में नहीं मनाते जन्माष्टमी, पढ़िए यहां कब जन्मेंगे कन्हाई

मथुरा के नन्दगांव में आठ को जन्मेंगे कृष्ण कन्हाई। नन्दगांव में खुर गिनती से मनता है कान्हा का जन्मोत्सव। रक्षा बंधन से आठ दिन बाद कान्हा का जन्मोत्सव मनाते थे नन्दबाबा। कंस के कारागार में जन्म लेने के बाद नंदगांव में आए थे कान्हा। ब्रज में इस बार तीन दिन मनाया जा रहा है श्रीकृष्ण जन्मोत्सव।

योगीश्वर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव वैसे तो पूरे विश्व मे 7 सितंबर को मनाया जाएगा, लेकिन कान्हा के क्रीड़ा स्थली नन्दगांव में उनका जन्मोत्सव 8 सितंबर को मनाया जाएगा। जिसके चलते नन्दबाबा मंदिर में तैयारियां शुरु हो गई है।

कंस के कारागार में हुआ था कान्हा का जन्म
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आज से साढ़े पांच हजार वर्ष पहले भाद्रपद शुक्ल पक्ष कि अष्टमी के दिन रात्रि 12 बजे कंस के कारागार में हुआ था। जिसके बाद वसुदेव कान्हा को नन्दबाबा के यहां गोकुल छोड़ आये थे। आज भी कान्हा का जन्मोत्सव उनके भक्त भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन मानते है। जिसके चलते इस बार कान्हा का जन्मोत्सव 7 सितंबर को मनाया जा रहा है। लेकिन कान्हा के क्रीड़ा स्थली नन्दगांव में उनका जन्मोत्सव 8 सितंबर को मनाया जाएगा। जिसके चलते नन्दबाबा मंदिर में तैयारियां शुरू हो गई हैं।

खुर गिनती से मनता है जन्मोत्सव

नन्दबाबा मंदिर के सेवायत बांकेलाल गोस्वामी ने बताया कि नन्दबाबा अपने कान्हा का जन्मोत्सव खुर गिनती से मनाते थे। जिसके अनुसार रक्षा बंधन से ठीक आठ दिन गिनकर वो अपने कान्हा का जन्मोत्सव मनाते थे। आज भी हम सभी उन्हीं के परंपरा के अनुसार खुर गिनती से ही कान्हा का जन्मोत्सव मनाते है।

नन्दगांव में 9 साल 49 दिन रहे कान्हा
भगवान श्रीकृष्ण नन्दगांव में 9 साल 49 दिन तक रहे। इस दौरान उन्होंने तमाम बाल लीलाओं का आयोजन भी नन्दगांव व बरसाना ब्रज क्षेत्र में किया था। आज भी उनके बाल लीलाओं के चिन्ह नन्दगांव व बरसाना क्षेत्र में स्थित प्राचीन पहाड़ियों पर मौजूद है। नन्दगांव से ही कान्हा अक्रूर जी के साथ मथुरा गये थे।

नन्दबाबा के नाम ही बसा था नन्दगांव
कंस के कारागार में जन्म लेने के बाद कान्हा नन्दबाबा के यहां गोकुल आ गये, लेकिन गोकुल में कंस के राक्षसों का अत्याचार बढ़ते देख नन्दबाबा बृषभान जी के सलाह पर नन्दगांव आकर बस गये थे। इस दौरान जब नन्दबाबा कान्हा को नन्दगांव लेकर आये थे। जब उनकी उम्र 2 साल 3 दिन थी। तभी से नन्दबाबा के नाम से ही नन्दगांव बस गया।

कंस के राक्षसों को था शांडिल्य ऋषी का श्राप
कंस के अत्याचारों के चलते नन्दबाबा बृषभान जी के कहने पर ही नन्दगांव आकर बसे थे। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि नन्दगांव में नन्दीश्वर पर्वत स्थित है। जहां नन्दबाबा का आज मंदिर बना हुआ है। मान्यता है कि द्वापरयुग में कंस के राक्षसों को शांडिल्य ऋषी का श्राप था कि अगर कोई भी नन्दीश्वर पर्वत सीमा के क्षेत्र में घुसने का प्रयास करेगा वो पत्थर का हो जाएगा।

ऋषि के श्राप से पत्थर के बन गए राक्षस
शांडिल्य ऋषि के श्राप के बाद भी कंस के दो राक्षस कान्हा पर हमला करने नन्दीश्वर पर्वत क्षेत्र में घुसे, लेकिन घुसते ही दोनों पत्थर के हो गये। आज भी नन्दगांव में पत्थर के राक्षसों की मूर्ति स्थित है। जिन्हें स्थानीय लोग हाऊ बिलाऊ के नाम से पुकारते है।

कान्हा के दर्शनों को नन्दगांव में बैठे गये थे भोलेनाथ
भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं में भोलेनाथ ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था। कान्हा के दर्शन करने जब भोलेनाथ नन्दभवन में आये तो मां यशोदा ने उन्हें वहां से भगा दिया था। जिसके बाद महादेव कान्हा के दर्शनों की आश लेकर एक कुंड के पास बैठ गये।

आज भी नन्दगांव में उस स्थान को अशेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। जहां भगवान भोलेनाथ नाथ कि प्राचीन शिवलिंग स्थित है। सावन माह में उक्त स्थान पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है। यह मंदिर ठीक नन्दबाबा मंदिर के सामने है।

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