टेक्नोलॉजी

China-Taiwan का नहीं था इस क्षेत्र में कोई अता-पता, कांग्रेस काल में कैसे भारत ने एक-दो नहीं बल्कि कई बार गंवाया Semiconductor Powerhouse बनने का मौका

China-Taiwan का नहीं था इस क्षेत्र में कोई अता-पता, कांग्रेस काल में कैसे भारत ने एक-दो नहीं बल्कि कई बार गंवाया Semiconductor Powerhouse बनने का मौका

China-Taiwan का नहीं था इस क्षेत्र में कोई अता-पता, कांग्रेस काल में कैसे भारत ने एक-दो नहीं बल्कि कई बार गंवाया Semiconductor Powerhouse बनने का मौका
एक साल से भी कम समय के 1.5 लाख करोड़ रुपए का प्लांट स्थापित करने के लिए दोनों कंपनियों के बीच साझेदारी अचानक टूट गई। फॉक्सकॉन ने 10 जुलाई को घोषणा की कि वह वेदांता के साथ संयुक्त उद्यम से बाहर हो रही है। आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि फॉक्सकॉन की वापसी का भारत के सेमीकंडक्टर लक्ष्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। फॉक्सकॉन और वेदांता दोनों का भारत में अहम निवेश है। जबकि कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर तंज कसा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि तो फॉक्सकॉन-वेदांता बंद हो गया है, लेकिन ऐसा लगता है कि माइक्रोन अभी भी सेमीकंडक्टर चिप असेंबली, पैकेजिंग और परीक्षण पर काम कर रहा है। हालांकि मीडिया रिपोर्ट में ये बात साफ रूप से सामने आई कि फॉक्कॉ़न ने संयुक्त साझेदारी से खुद को बाहर किया है, भारत के सेमीकंडक्टर फैब से नहीं। हालांकि बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि कांग्रेस शासन के दौरान भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र का एक प्रमख खिलाड़़ी होने का सुनहरा अवसर हाथों से गंवा दिया था। एक या दो बार नहीं बल्कि कई अवसरों पर।

सेमीकंडक्टर है क्या?

सेमीकंडक्टर का मतलब अर्धचालक होता है। इसमें एक खास तरह का पदार्थ होता है। इसमें विद्युत के सुचालक और कुचालक के गुण होते हैं। ये विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करने का काम करते हैं। इनका निर्माण सिलिकॉन से होता है। उसमें कुछ विशेष तरह के गुणों में बदलाव लाया जा सके। पर्दाथ का इस्तेमाल करेक विद्युत सर्किट चिप बनाया जाता है। कई हाईटेक उपकरणों में इस चिप को इंस्टॉल किया जाता है। सेमीकंडक्टर चिप के जरिए ही डाटा की प्रोसेसिंग होती है। इस कारण इसको इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिमाग कहा जाता है। भारत की ये विडंबना है कि दुनिया की लगभग सभी बड़ी चिप कंपनियों के यहां डिजाइन और आरएंडडी सेंटर हैं। लेकिन चिप बनाने वाले फैब्रिकेशन प्लांट या फैब यूनिट नहीं है। बता दें कि फैब सेमीकंडक्टर के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला इंडस्ट्रियल टर्म है।

भारत ने गंवाए कई मौके

फैब स्थापित करने और इको सिस्टम को मजबूत करने की जरूरत होती है। हालांकि हमारे पास ऐसा इको सिस्टम वर्षों पहले से ही मौजूद था। लेकिन लगातार गलत अवसरों ने हमारे लिए बाधा उत्पन्न की। अगर आपसे मैं ये कहीं कि 60-70 के दशक ट्रांजिस्टर और इंटिग्रेटेड सर्किट भारत में एक फैब बनाने पर विचार किया गया। सिलिकॉन रिवॉल्यूशन के शुरुआती दौर में फेयचाइल्ड सेमीकंडक्टर ने भारत में फैब के निर्माण की बात सोची थी। लेकिन ब्यूरोटेकल सुस्ती और बाधाएं ने उन्हें मलेशिया की ओर रुख करने पर विवश कर दिया। भारत ने एक सुनहरा मौका गंवा दिया। इतना ही नहीं 1962 के युद्ध के बाद भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेज ने एक फैब का सेटअप सिलिकन और जर्मेनियन ट्रांजिस्ट्रर के लिए किया। बीईएल के रिटायर्ड सीनियर डीजीएम ने बताया कि सिलिकन ट्रांजिस्ट्रर की मांग इतनी अधिक थी कि कंपनी के पास ऑर्डर की लाइन लगी थी। हालांकि बाद में कई सारे फैब यूनिट को सस्ते इंटिग्रेटेड सर्किट के आने के बाद बंद करना पड़ा। चीन, ताइवान, साउथ कोरिया के बाजार में उतरने के बाद बीईएल इनसे मुकाबले में पीछे छूट गई।

सेमीकंडक्टर पावरहाउस बनने का सपना

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए भारत की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स के गठन को मंजूरी दे दी और यह समय उपयुक्त था क्योंकि आज इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी ताइवान, इज़राइल, कोरिया और यहां तक ​​कि चीन सेमीकंडक्टर पावरहाउस बनने के करीब भी नहीं थे। चीजें एक आशाजनक शुरुआत के रूप में सामने आईं, जब मोहाली को चुना गया और 100 प्रतिशत राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम, सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड (एससीएल) ने भारत के वैश्विक सेमीकंडक्टर निर्माता बनने के सपने को साकार करने के लिए 1984 में उत्पादन शुरू किया। 1980 के दशक की शुरुआत में एससीएल को यह फायदा था कि बाकी दुनिया में हर कोई उनसे बहुत आगे नहीं था। हालाँकि, यह सपना 7 फरवरी, 1989 को मोहाली में एससीएल में लगी एक रहस्यमयी आग में टूट गया, जिससे आयातित उपकरणों और सुविधाओं को भारी नुकसान हुआ, जिनकी अनुमानित कीमत 60 करोड़ रुपये थी। बताया गया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों ने विनाशकारी आग के कारणों का आकलन करने के लिए एससीएल का दौरा किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आग लगने की वजह के बारे में कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। एससीएल कर्मचारी संघ ने मंत्रालय को सौंपे एक ज्ञापन में 7 फरवरी की रात को यूनिट में लगी विनाशकारी आग में किसी भी आंतरिक तोड़फोड़ की संभावना से इनकार किया। हालांकि, संघ ने महसूस किया कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल कुप्रबंधन के अलावा आग पर काबू नहीं पाया जा सका। घटना के बाद, तत्कालीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री केआर नारायणन ने कहा कि एससीएल जल्द ही उत्पादन में वापस आ जाएगा। अटकलों के बीच, उन्होंने कहा कि नई तकनीक पेश की जाएगी और कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि कोई छंटनी नहीं होगी। हालाँकि, इसमें आठ साल लग गए और आख़िरकार 1997 में इसे दोबारा शुरू किया गया। खोई ज़मीन की भरपाई करने की कोशिश करते हुए, सरकार 2000 में एससीएल की इक्विटी का एक हिस्सा बेचना भी चाहती थी, लेकिन संभावित निजी निवेशक इस समझौते पर नहीं आ सके। फिर अंततः 2006 में कंपनी को अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक अनुसंधान एवं विकास केंद्र के रूप में पुनर्गठित किया गया। एससीएल का नाम बदलकर “सेमीकंडक्टर लैब” कर दिया गया।

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