राजनीति

गुलाम नबी आजाद अपने ही नेताओं के बीच खो रहे अपनी चमक, कई भरोसेमंदों ने छोड़ा साथ

गुलाम नबी आजाद अपने ही नेताओं के बीच खो रहे अपनी चमक, कई भरोसेमंदों ने छोड़ा साथ

कांग्रेस से अलग होकर डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी का निर्माण करने वाले गुलाम नबी आजाद को बड़ा झटका लगा है। उनके साथ जुड़ने के बाद उनकी पार्टी के 17 नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया है। ये अधिकतर वो नेता हैं जो गुलाम नबी आजाद के बेहद खास समझे जाते थे।

जिन नेताओं ने गुलाम नबी आजाद का साथ छोड़ा है उनमें पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष पीरजादा मोहम्मद सईद का नाम भी शामिल है। इन नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद उनका साथ दिया था। मगर अब सभी 17 नेता गुलाम नबी आजाद को छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए है।

जानकारी के मुताबिक सभी 17 नेताओं ने सात जनवरी को पार्टी में घर वापसी की है। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य में सेक्युलर वोटों का बंटवारा कर गुलाम नबी आजाद की पार्टी से सीधे तौर पर बीजेपी को लाभ होगा। वहीं अब सवाल खड़ा हो रहा है कि किसी समय में गुलाम नबी आजाद के खास और भरोसेमंद समझे जाने वाले नेताओं ने उनसे दूरी क्यों बनाई है। इसके लिए ये जानना भी जरुरी है कि गुलाम नबी आजाद ने जम्मू कश्मीर की राजनीति को समझने में गलती की है। कश्मीर के लिए धारा 370, जमीन का अधिकार, रोजगार जैसे कई मुद्दे हैं जो काफी अहम हो जाते है।

कई फैसलों पर मत साफ नहीं
जानकारी के मुताबिक राज्यसभा सांसद और सदन में विपक्ष के नेता के तौर पर वर्ष 2019 के अगस्त में जब केंद्र सरकार ने धारा 370 को खत्म करने का फैसला किया था तो आजाद ने इस फैसले का विरोध किया था। उन्होंने एक बयान में कहा था कि धारा 370 बुरी नहीं थी। 70 वर्षों तक भारतीय संविधान का हिस्सा रहने वाली कोई धारा बुरी कैसे हो सकती है। वहीं बीते वर्ष उन्होंने एक बयान में कहा था कि वो 370 के मुद्दे से दूर रहना चाहते है। उन्होंने कहा था कि मैं लोगों को धारा 370 बहाल करने के मुद्दे पर बहला नहीं सकता।

पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के हक में आजाद
गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के हक में है। चुनावों को ध्यान में रखते हुए आजाद का रुख इस मसले पर फिर से बदल रहा है। धारा 370 लागू होने के बाद जम्मू कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छिन गया था। इस मामले पर उन्होंने कहा था कि इस परिवर्तन से जम्मू कश्मीर के लोगों के जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन देखने को नहीं मिला है।

बयानों के कारण खोया भरोसा
माना जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस से अलग होने के बाद जम्मू कश्मीर की जनता के बीच अपना विश्वास पैदा करने में असफल रहे। वो लगातार कई मुद्दों पर बोलते रहे हैं मगर उनका रुख साफ नहीं हुआ है। कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर गुलाम नबी आजाद की राय स्पष्ट नजर नहीं आती है ऐसे में ये उनके खिलाफ जाता है।

वहीं गुलाम नबी आजाद जम्मू में एक मजबूत छवि के नेता के तौर पर नहीं उभरे है। कांग्रेस पार्टी में संजय गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक के करीबी रहे गुलाम नबी आजाद का गांधी परिवार से करीबी रिश्ता रहा है। उन्हें वर्ष 2005 से 2008 तक जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था। इस दौरान भी वो जनता के बीच अपनी स्पष्ट छवि नहीं बना सके।

वहीं कांग्रेस पार्टी से निकलने के बाद एक तरफ चर्चा थी की आजाद भाजपा का दामन थाम सकते है। हालांकि उन्होंने भाजपा का दामन नहीं थामा और अपनी नई पार्टी की स्थापना की मगर समय समय पर गुलाम नबी आजाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ झुकते नजर आए है। सदन में हुए विदाई समारोह के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलाम नबी आजाद को लेकर बात की थी।

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