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नवीन पटनायक: अपराजेय, अप्रतिद्वंदीय राजनेता, 22 साल से CM का दायित्व निभाते आ रहे हैं

नवीन पटनायक: अपराजेय, अप्रतिद्वंदीय राजनेता, 22 साल से CM का दायित्व निभाते आ रहे हैं

नवल, ताजा या कहे नवीन, शब्द अलग-अलग लेकिन मतलब सिर्फ एक यानि कि नया। एक चेहरा जो हमेशा ओडिशा के लोगों के लिए नया और भरोसेमंद माना जाता रहा है वो भी पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से जिसके तिलिस्म को भेदने के लिए मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक प्रयास करते रहे कि वो पप्पू का तिलिस्म तोड़ दें। नवीन पटनायक जिनके घर का नाम पप्पू है। जो बीजू जनता दल के सर्वे-सर्वा हैं और पिछले 22वर्षों से लगातार ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं और ओडिशा की राजनीति की धुरी भी हैं। राज्य में आयोजित होने वाले ‘मेक-इन-ओडिशा’ कॉन्क्लेव के तीसरे संस्करण के लिए निवेशकों की बैठक में भाग लेने के लिए 16 अक्टूबर यानी अपने जन्मदिन पर नवीन पटनायक हैदराबाद के लिए उड़ान भरेंगे।

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पटनायक का जन्म ओडिशा के कटक में हुआ है। उनके पिता बिजयानंद (बीजू) पटनायक भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में एक प्रसिद्ध शख्सियत थे। ओडिशा की राजनीति में भी बीजू पटनायक ने अच्छा मुकाम हासिल किया। उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल (1961-62 और 1990-95) की सेवा की। नवीन पटनायक ने 1967 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद लेखन की दिशा में कदम बढ़ाया। कई वर्षों तक वे ज्यादातर विदेश में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य जगहों पर रहे। अपने पिता से इतर उनका राजनीति से कोई संबंध नहीं था। अप्रैल 1997 में अपने पिता की मृत्यु से कुछ समय पहले पटनायक भारत लौट आए। जून में नवीन ने अपने पिता की पार्टी जनता दल के सदस्य के रूप में लोकसभा में अपने पिता की खाली सीट पर हुए उप-चुनाव में जीत हासिल की। उन्हें इस्पात और खान मंत्रालय की सलाहकार समिति में नामित किया गया था।

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जब जनता दल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल नहीं होने का फैसला किया तो पटनायक ने दिसंबर 1997 में बीजद का गठन कर लिया। एनडीए यानी उस दौर में राजनीतिक दलों का एक ऐसा गठबंधन जिसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 1998 में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बना रही थी। पटनायक बीजद के साथ एनडीए का हिस्सा बने और जीत हासिल की। एनडीए सरकार की कैबिनेट में उन्हें इस्पात और खान मंत्रालय (1999 से खान और खनिज मंत्रालय) के प्रमुख के रूप में नामित किया गया था। 2000 में बीजद ने भाजपा के साथ गठबंधन में ओडिशा राज्य विधान सभा के चुनावों में बड़ी संख्या में सीटें जीतीं और राज्य सरकार से लंबे समय से सेवारत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) को सूबे की सत्ता से बाहर कर दिया। पटनायक ने अपने कांग्रेस पार्टी के प्रतिद्वंद्वी को आसानी से हराया और केंद्र सरकार में अपने पदों से इस्तीफा देने के बाद, ओडिशा के मुख्यमंत्री बने।

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उन्हें काफी हद तक एक सौम्य छवि वाले नेता के तौर पर जाना जाता है। 2004 में राज्य विधानसभा चुनावों में बीजद-भाजपा गठबंधन ने एक और बड़ी बहुमत सीटें जीतीं। पटनायक ने अपने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी को 2000 की तुलना में भी बड़े अंतर से हराया और वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। बीजेडी ने 2009 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा के साथ गठबंधन को तोड़ दिया और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हुए एक बार फिर से अभूतपूर्व जीत हासिल करने सरकार बनाई। 2014 के चुनावों में पार्टी ने फिर से फतह हासिल की। बीजेडी ने राज्य की विधानसभा में उपलब्ध सीटों का दसवां हिस्सा अतिरिक्त हासिल किया, जबकि देश का अधिकांश हिस्सा मोदी लहर की भेंट चढ़ गया था। 2019 के चुनावों में जीत के साथ पटनायक लगातार पांचवें कार्यकाल की वजह से ओडिशा के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बन गए।

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