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आठ महीने चली रार के बाद ठंडी पड़ी आयातित कोयले की गर्मी, क्या अब नहीं बढ़ेंगी बिजली दरें?

आठ महीने चली रार के बाद ठंडी पड़ी आयातित कोयले की गर्मी, क्या अब नहीं बढ़ेंगी बिजली दरें?

केंद्र सरकार चाहती थी कि राज्य 10 फीसदी कोयला आयात करें। इसी को लेकर कभी हां तो कभी ना में उलझी रही सरकार ने आखिरकार राहत की सांस ली है। बिजली दरें बढ़ने की आशंका टल गई है।

आयातित कोयले की खरीद को लेकर करीब आठ महीने तक केंद्र और राज्यों के बीच रार छिड़ी रही। इस दौरान केंद्र ने आयातित कोयला खरीदने के लिए राज्यों पर हर तरह का दबाव बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। प्रदेश में तो आयातित कोयले की खरीद का मामला लगातार गर्माया रहा। इससे बिजली दरों के बढ़ने की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार ने पहले तो साफ इनकार कर दिया, लेकिन जब दबाव ज्यादा बढ़ा तो दो महीने के लिए आयातित कोयला खरीदने को मंजूरी दे दी गई। मामले के ज्यादा तूल पकड़ने पर केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने कदम पीछे खींचते हुए आयातित कोयले की खरीद का मामला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र भेजकर आयातित कोयला खरीदने के लिए दी गई सहमति वापस ले ली। आठ महीने बाद अब जाकर आयातित कोयले की गर्मी ठंडी पड़ी।
दरअसल, घरेलू कोयले की कमी का हवाला देते हुए 7 दिसंबर 2021 को केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को 10 प्रतिशत कोयला आयात करने की सलाह दी थी। राज्यों की ओर से इसके लिए कोई पहल न होने पर 28 अप्रैल 2022 को विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को कोयला आयात के लिए समयबद्ध निर्देश भेजते हुए इसकी प्रक्रिया तुरंत शुरू करने को कहा। यही नहीं, कोयला आयात न करने पर घरेलू कोयले के आवंटन में कटौती की चेतावनी भी दे दी गई। इसी के बाद आयातित कोयले को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच तकरार तेज हुई जो हाल ही में विद्युत मंत्रालय के कदम पीछे खींचने के बाद खत्म हुई। इसमें बड़ी भूमिका उपभोक्ता और बिजली अभियंता और कर्मचारी संगठनों की भी रही, जो देश में घरेलू कोयले की पर्याप्त उपलब्धता का दावा करते हुए आंकड़ों के जरिये विरोध में आवाज उठाते रहे। विरोध इसे लेकर था कि जब देश में 3000 रुपये प्रति टन की कीमत वाला घरेलू कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो 20,000 रुपये टन की कीमत वाला आयातित कोयला खरीदने का क्या औचित्य है? इसका बोझ दरों में वृद्धि के रूप में आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को 19 अप्रैल से आयातित कोयले की खरीद के लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू करने का फरमान भेजा था। इससे पहले राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर कर दी। आयोग ने विद्युत उत्पादन निगम से जवाब-तलब कर दिया तो टेंडर की प्रक्रिया में पेंच फंस गया। केंद्र के निर्देश पर विद्युत उत्पादन निगम 22.5 लाख टन आयातित कोयला खरीदने के लिए टेंडर की प्रक्रिया में जुटा था। नियामक आयोग ने उपभोक्ता परिषद की याचिका और समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का संज्ञान लेते हुए विद्युत उत्पादन निगम को नोटिस जारी कर कई बिंदुओं पर जवाब-तलब कर लिया। यही नहीं, आयोग ने स्पष्ट चेतावनी भी दे दी कि आयातित कोयले की खरीद पर आने वाले अतिरिक्त खर्च को उत्पादन निगम के वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) प्रस्ताव का हिस्सा नहीं मानेगा।

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