*वीर बाल दिवस का आयोजन – गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादों की शहादत को किया गया नमन*
*वीर बाल दिवस का आयोजन - गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादों की शहादत को किया गया नमन*

महिला एवम बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा वीर बाल दिवस को राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है – उत्तर प्रदेश शासन के आदेश एवम जिलाधिकारी उमेश मिश्रा एवम मुख्य विकास अधिकारी महोदय संदीप भागिया के निर्देशन में वीर बाल दिवस कार्यक्रम का आयोजन ————————————————–वर्ष 2022 में 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस मनाने की की गई थी शुरुआत ————————————————– आज 26.12.2024 को राजकीय सम्प्रेक्षण गृह ( किशोर), मुज़फ्फरनगर मे सिखों के 10 वे गुरु गोविन्द सिंह के साहिबज़ादों जोरावर सिंह व फतेह सिंह की शहादत को याद कर नमन किया गया। वीर बाल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम मे किशोरों को दृढ़ संकल्प के साथ सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया। डॉ राजीव कुमार सदस्य, प्रबन्धन समिति द्वारा संस्था में निरूद्ध किशोरों को छोटे साहिबज़ादों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह व उनकी शहादत के विषय में विस्तार से बताया गया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अत्याचार, अन्याय और अधर्म का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत व शक्तिशाली लहर पैदा की थी। गुरु जी ने पंच प्यारों के विनम्रता भरे आदेश पर श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया। उफनती हुई सरसा नदी पार करते ही एक बड़ा युद्ध हुआ। इसमें दोनों पक्षों की भारी क्षति हुई।
नदी पार करते हुए गुरु जी का परिवार दो हिस्सों में बंट गया। दो छोटे साहिबजादे- बाबा जोरावर सिंह जी, बाबा फतेह सिंह जी अपनी दादी मां माता गुजरी जी के साथ एक ओर चले गए तथा बड़े साहिबजादे- बाबा अजीत सिंह जी, बाबा जुझार सिंह जी अपने पिता जी के साथ रह गए। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सरसा नदी को पार कर चमकौर साहिब पहुंच गए, जहां महासंघर्ष शुरू हुआ, जिसमें चालीस सिखों को एक विशाल सेना का सामना करना पड़ा।
इसी युद्ध में बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह बहादुरी से लड़ते हुए मैदान-ए-जंग में शहादत प्राप्त कर गए। उधर सरहिंद के पास गुरुजी के दो छोटे साहिबजादों ने, जो अभी किशोरावस्था में भी नहीं थे, साहस के साथ जल्लाद की तलवार का सामना किया और धोखे का भी। गंगू, जिसे सरसा नदी पार करने के बाद गुरुजी के छोटे पुत्रों व उनकी दादी मां माता गुजरी जी की जिम्मेदारी दी गई थी, ने उनको धोखा दिया। गंगू ने माता गुजरी का सामान चुरा लिया और विरोध करने पर दूसरों पर दोष मढ़ते हुए अज्ञानता का नाटक किया।
गंगू ने गुरुजी के परिवार के बारे में गांव के मुखिया को सूचना दी। मुखिया ने गुरुजी के इन दो छोटे साहिबजादों और इनकी दादी को हिरासत में ले लिया और अंतत: उन्हें सरहिन्द के नवाब वजीर खान को सौंप दिया।
जब इन्हें वजीर खान के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया तो इन दोनों साहिबजादों ने साहसपूर्वक ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह’ कहकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।
मात्र 7 वर्ष व 9 वर्ष की आयु के साहिबजादों ने जोर देकर कहा कि वे न तो धन चाहते हैं और न ही पद, वे अपनी जान गंवाने को तैयार हैं लेकिन अपना धर्म नहीं। वजीर खान ने उन्हें माता गुजरी जी के साथ ठंडे बुर्ज में बंद करने का आदेश दिया। 1705 में दोनों साहिबजादों को जिन्दा दीवार में चिनवा दिया गया। दोनों ने मृत्यु स्वीकार की लेकिन अपने धर्म पर अटल रहे। आज भी अनेक सिख शहीदी सप्ताह के इन दिनों में ठंडी जमीन पर सोते हैं तथा मनोरंजक कार्यक्रमों से परहेज करते हैं। इतिहास में गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों की शहादत का कोई सानी नहीं है। साहिबजादों की इस अभूतपूर्व शहादत को नमन करने के लिए भारत के माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2022 से 26 दिसम्बर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया, ताकि हमारे देश के बालक, बालिकाएं व युवा साहिबजादों के अदम्य साहस, बलिदान व अभूतपूर्व शहादत से परिचित हों और प्रेरित भी हों।
वीर बाल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मोहित कुमार संस्था प्रभारी द्वारा किशोरों को साहिबज़ादों से प्रेरणा लेनी चाहिये। संस्था प्रभारी द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया। उक्त कार्यक्रम जिला प्रोबेशन अधिकारी संजय कुमार के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया। राजकीय सम्प्रेक्षण गृह (किशोर) में नामित शिक्षक राकेश कुमार एवम सैयद शारिक द्वारा किशोरों को सकारात्मक सोच विकसित करने के लिये प्रेरित किया गया । उक्त आयोजन में प्रदीप कुमार, सुरजीत सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही।