Yes Milord: महिला जज ने क्यों मांगी इच्छामुत्यु, दिल्ली सरकार और LG विवाद पर CJI हुए नाराज, जानें इस हफ्ते कोर्ट में क्या कुछ हुआ
Yes Milord: महिला जज ने क्यों मांगी इच्छामुत्यु, दिल्ली सरकार और LG विवाद पर CJI हुए नाराज, जानें इस हफ्ते कोर्ट में क्या कुछ हुआ

सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक के वीकली राउंड अप में इस सप्ताह कानूनी खबरों के लिहाज से काफी उथल-पुथल वाला रहा है। मथुरा ईदगाह मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्पीकर की बात सुनते हुए विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए समय बढ़ाया। सीजेआई ने किस याचिका पर जताई नाराजगी। सरोगेसी के दुरुपयोग पर दिल्ली हाई कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी। इस सप्ताह यानी 11 दिसंबर से 16 दिसंबर 2023 तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।
सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को झटका
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के उस मौखिक अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि से सटे शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण कराने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था। कोर्ट ने हालांकि उनसे संबंधित फैसले को अपील के माध्यम से चुनौती देने को कहा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए अदालत की निगरानी में अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त करने की मांग करने वाली याचिका को स्वीकार कर ली थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवी एन भट्टी की पीठ ने मथुरा की अदालत में लंबित विवाद से संबंधित सभी मामलों को अपने पास स्थानांतरित करने संबंधी हाई कोर्ट के 26 मई के आदेश को चुनौती देने वाली कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की याचिका पर सुनवाई नौ जनवरी तक के लिए टाल दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की अदालत में लंबित श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद संबंधी विवादों से जुड़े सभी मामले हाई कोर्ट स्थानांतरित किए जाने का 26 मई को निर्देश दिया था।
शिवसेना विधायकों की अयोग्यता पर 10 जनवरी तक करें फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए 10 जनवरी तक का समय दिया है। इन याचिकाओं में शिवसेना के दोनों गुटों ने एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष से अयोग्यता याचिकाओं पर 31 दिसंबर तक फैसला करने को कहा था। कोर्ट ने अब इस अवधि को बढ़ाकर 10 जनवरी, 2024 तक कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अध्यक्ष ने संकेत दिया है कि कार्यवाही 20 दिसंबर को बंद कर दी जाएगी और अध्यक्ष ने आदेश की घोषणा के लिए समय बढ़ाने का अनुरोध किया है। पूर्व में दी गई समयसीमा को ध्यान में रखते हुए, हम अध्यक्ष को निर्णय सुनाने के लिए 10 जनवरी, 2023 तक का समय देते हैं।
दिल्ली सरकार और एलजी का हर विवाद सुप्रीम कोर्ट में क्यों?
शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच हर विवाद को सुप्रीम कोर्ट में आने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के तहत एक वैधानिक निकाय, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा दायर एक याचिका को स्थानांतरित करते हुए टिप्पणी की। दरअसल, डीसीपीसीआर ने अपने फंड को कथित तौर पर रोके जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि हर विवाद, सभी और विविध, सुप्रीम कोर्ट में क्यों आ रहे हैं? पीठ ने डीसीपीसीआर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन से कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट जाएं। हमें यहां (अनुच्छेद) 32 के तहत याचिका पर विचार क्यों करना चाहिए।
सरोगेसी डोनर बैन पर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरोगेसी की प्रक्रिया को विनियमित करने वाले कानून की मंशा अपनी कोख देने वाली महिलाओं के शोषण पर अंकुश लगाना है। अदालत ने कहा कि कोई भी नहीं चाहता कि भारत में किराये की कोख एक उद्योग बन जाए। सरोगेसी से आशय किसी महिला द्वारा अपनी कोख (गर्भ) में किसी अन्य दंपति के बच्चे को पालने और उसे जन्म देने से है। अदालत ने यह टिप्पणी कनाडा में रहने वाले एक भारतीय मूल के दंपति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इस याचिका में सरोगेसी नियम, 2022 के नियम सात के तहत फॉर्म दो में बदलाव करके किराये की कोख प्रदाता महिला पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम में संशोधन करने के केंद्र द्वारा जारी 14 मार्च की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।
महिला जज की इच्छामृत्यु की मांग वाली चिट्ठी
भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की एक महिला न्यायाधीश द्वारा उन्हें लिखे पत्र में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय से रिपोर्ट मांगी है। सूत्रों के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव अतुल एम कुरहेकर को स्थिति अपडेट लेने का निर्देश दिया। इसके बाद कुरहेकर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर महिला जज द्वारा की गई सभी शिकायतों के बारे में जानकारी मांगी। यह घटनाक्रम उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में तैनात महिला सिविल जज द्वारा मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद आया है। जज ने अपने पत्र में इच्छामृत्यु की गुहार लगाते हुए कहा कि वह बहुत आहत हैं क्योंकि उनके वरिष्ठ जिला जज ने उनके साथ बहुत अपमानजनक व्यवहार किया।