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भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस, जिसकी मदद से काबुल में फंसे भारतीयों को सकुशल निकाला गया

भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस, जिसकी मदद से काबुल में फंसे भारतीयों को सकुशल निकाला गया

भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस, जिसकी मदद से काबुल में फंसे भारतीयों को सकुशल निकाला गया

काबुल। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद गुरुवार को पहला बड़ा धमाका हुआ। जिसमें 100 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबरें सामने आ रही हैं। इस हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों की भी मौत हुई। दरअसल, 15 अगस्त के दिन राजधानी काबुल में तालिबानियों की एंट्री के साथ ही अफगानी जमीं में रह रहे लोग मुल्क छोड़ने के लिए विवश हो गए। क्योंकि यह लोग तालिबान द्वारा किए गए अत्याचारों को भूल नहीं पाए थे। ऐसे में भारी तादाद में लोग काबुल एयरपोर्ट पहुंचे, जहां से भारत समेत तमाम मुल्कों की सरकारों ने लोगों को निकालने के लिए आपातकालीन ऑपरेशन चलाया हुआ है।

पहला विदेशी सैन्य बेस

ऐसे में अफगानिस्तान से लोगों को निकालने के लिए भारत का पहला विदेश सैन्य बेस काफी महत्वपूर्ण रहा। आपको बता दें कि अफगान संकट के समय पर भारत का पहला विदेशी एयरबेस गिसार मिलिट्री एयरोड्रम फंसे भारतीयों को निकालने का अहम जरिया बना। दरअसल, गिसार मिलिट्री एयरोड्रम को भारत और ताजिकिस्तान मिलकर चला रहा है।

भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे के पश्चिम में स्थित है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक लगभग दो दशकों से भारत और ताजिकिस्तान मिलकर इस सैन्य बेस को चला रहे हैं।

विदेश मंत्रालय की मदद से बना सैन्य बेस

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक गिसार मिलिट्री एयरोड्रम की स्थापना में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पूर्व वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ की मुख्य भूमिका थी। इस सैन्य बेस को बनाने में जो पैसा खर्च हुआ है उसे विदेश मंत्रालय ने वहन किया है।

हाल ही वायुसेना के विमान ने काबुल में फंसे भारतीयों को निकालकर ताजिकिस्तान पहुंचाया था। जहां से एयर इंडिया के विमान से उन्हें भारत लाया गया। आपको बता दें कि काबुल से लोगों को निकालने के लिए वायुसेना के सी-17 विमान को दुशांबे में स्थित सैन्य बेस में स्टैंड बाई में रखा गया है। दरअसल, इस एयरबेस को जीएमए अयानी एयर बेस के तौर पर जाना जाता है। क्योंकि यह दुशांबे से 10 किमी दूर अयानी नामक गांव में स्थित है।Bringing Indians home from Afghanistan!

AI 1956 carrying 87 Indians departs from Tajikistan for New Delhi. Two Nepalese nationals also evacuated.
Assisted and supported by our Embassy @IndEmbDushanbe.
More evacuation flights to follow. pic.twitter.com/YMCuJQ7595

— Arindam Bagchi (@MEAIndia) August 21, 2021

जॉर्ज फर्नांडिस का मिला समर्थन

विदेशी जमीं पर भारत के सैन्य बेस का विचार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश मंत्रालय को आया था। ऐसे में साल 2001-02 के आस पास तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने इसका समर्थन किया और इसे योजना की रूपरेखा दी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक गिसार की हवाईपट्टी की मरम्मत की गई और उसे बढ़ाकर बड़े विमानों को उतराने और उड़ान भरने लायक बनाया गया।

 

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