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Kerala में ट्रांसजेंडर समुदाय ने मध्य लिंगी बच्चों की सर्जरी पर उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया

Kerala में ट्रांसजेंडर समुदाय ने मध्य लिंगी बच्चों की सर्जरी पर उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया

तिरुवनंतपुरम। केरल में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों ने बृहस्पतिवार को मध्य लिंगी (इंटरसेक्स) बच्चों की सहमति के बिना उनकी लिंग निर्धारण सर्जरी पर उच्च न्यायालय के हालिया फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह की प्रक्रियाएं हमेशा ‘‘सही और सफल’’ नहीं हो सकती हैं। ‘इंटरसेक्स’ या मध्य लिंगी उस व्यक्ति को कहते हैं जिसका शारीरिक, हार्मोन या लिंग न तो पूरी तरह पुरुष का होता है और न महिला का। उन्होंने अदालत के फैसले का तहे दिल से स्वागत किया, जिसने अस्पष्ट जननांग वाले सात वर्षीय ‘इंटरसेक्स’ बच्चे के माता-पिता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने बच्चे को एक लड़की के रूप में पालने के लिए सर्जरी की अनुमति मांगी थी।

प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता शीतल श्याम ने बताया कि सामान्य रूप से समाज में और विशेष रूप से चिकित्सा क्षेत्र में इंटरसेक्स व्यक्तियों के बारे में जागरूकता की कमी है। उन्होंने पीटीआई-को बताया, ‘‘जब इंटरसेक्स बच्चे पैदा होते हैं, तो कई चिकित्सा पेशेवर माता-पिता को उनके लिंग निर्धारण के लिए उपचारात्मक सर्जरी कराने का सुझाव देते हैं। लेकिन, ऐसी प्रक्रियाएं और बच्चे के लिए उनके माता पिता द्वारा किया गया लैंगिक चयन हमेशा सही और सफल नहीं हो सकता है।’’ कार्यकर्ता ने कहा कि अधिकांश मामलों में परिवार मध्य लिंगी बच्चे के लड़के वाले जननांगों को बनाए रखते हुए बालिका वाले जननांगों को हटाने को प्राथमिकता देगा। शीतल श्याम ने कहा, ‘‘वे इसे अपनी पसंद और प्राथमिकता के आधार पर कर रहे हैं।

लेकिन, त्रासदी यह है कि जब बच्चा बालिग हो जाता है, तो उसमें अपने लिंग के अलावा दूसरे लिंग के प्रति रुझान विकसित हो सकता है।’’ उन्होंने कहा कि परिवार और चिकित्सा पेशेवर मान सकते हैं कि सर्जरी के माध्यम से मध्य लिंगी बच्चे की मनमाफिक लैंगिक पहचान तय की जा सकती है, लेकिन यह सभी मामलों में काम नहीं करता। श्याम ने आगे कहा, ‘‘इस तरह की योन उपचारात्मक सर्जरी इंटरसेक्स व्यक्ति के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। मेरी राय में यह केवल उस उम्र में किया जाना चाहिए जब बच्चा अपने यौन रुझान के बारे में सोचने और समझने के लिए पर्याप्त परिपक्व हो।’’

कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि हालांकि मध्य लैंगिकता एक जैविक स्थिति है, लेकिन चिकित्सा पेशेवरों के बीच इसके बारे में जागरूकता की कमी के कारण इसे एक बीमारी या भ्रम के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि इसलिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए न्यायपालिका सहित सभी क्षेत्रों में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला हर तरह से एक ऐतिहासिक फैसला है। कार्यकर्ता ने राज्य में पनप रहे अवैध लिंग रूपांतरण और हार्मोन थेरेपी केंद्रों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के इलाज के लिए एक ठोस प्रोटोकॉल और स्पष्ट दिशानिर्देशों की आवश्यकता की भी मांग की।

इसी तरह के विचार साझा करते हुए ट्रांसजेंडर कलाकार आरएलवी चारुलता ने भी हाल के उच्च न्यायालय के फैसले का खुले दिल से समर्थन किया और कहा कि एक बच्चे की इस प्रकार की सर्जरी उसके जीवन और गरिमा का हनन है। केरल उच्च न्यायालय ने अस्पष्ट जननांग वाले सात वर्षीय बच्चे के माता-पिता द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि नाबालिग की सहमति के बिना उनके बच्चे की एक बच्ची के रूप में लिंग निर्धारण सर्जरी उसकी गरिमा और गोपनीयता का हनन करेगी। न्यायमूर्ति वी. जी. अरुण ने सात अगस्त को जारी एक आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान चुनने के अधिकार में हस्तक्षेप निश्चित रूप से उस व्यक्ति की निजता में दखल और उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।

अदालत ने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर माता-पिता की चिंताओं पर विचार करते हुए कहा कि ‘‘विधिवत रूप से गठित मेडिकल बोर्ड’’ की सिफारिश के आधार पर आवश्यक हस्तक्षेप किया जा सकता है। इसके बाद अदालत ने सरकार को विशेषज्ञों से युक्त एक राज्य स्तरीय बहुविषयक समिति गठित करने का निर्देश दिया, जिसमें एक बाल रोग विशेषज्ञ/बाल चिकित्सा एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (मधुमेह, थायरॉयड, बांझपन, विकास संबंधी समस्याएं, चयापचय संबंधी विकार, ऑस्टियोपोरोसिस, कैंसर और हार्मोन से संबंधित मामलों के विशेषज्ञ), बाल रोग विशेषज्ञ और बाल मनोचिकित्सक/बाल मनोवैज्ञानिक शामिल होंगे। अदालत ने सरकार को तीन महीने के भीतर शिशुओं और बच्चों पर लिंग चयनात्मक सर्जरी को विनियमित करने का आदेश जारी करने का भी निर्देश दिया।

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