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प्रलय के मुहाने पर आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली… फट रही जमीन… अब क्‍या होगा उजड़ते जोशीमठ का भविष्‍य?

प्रलय के मुहाने पर आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली... फट रही जमीन... अब क्‍या होगा उजड़ते जोशीमठ का भविष्‍य?

प्रलय के मुहाने पर आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली… फट रही जमीन… अब क्‍या होगा उजड़ते जोशीमठ का भविष्‍य?

Joshimath Sinking: जोशीमठ में जमीन फट रही है… बाशिंदों के आशियानें उनकी आंखों के सामने जमींदोज हो रहे हैं।

Joshimath Sinking आज जोशीमठ प्रकृति की मार से कराह रहा है। लेकिन उसकी पीड़ा हरने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। बदरीनाथ और मलारी हाईवे भी भूधंसाव की जद में आया है। यहां अभी तक 863 भवनों पर दरारें आई हैं और 20 भवनों को तोड़ा जा रहा है।

: Joshimath Sinking: आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली प्रलय के मुहाने पर पहुंच चुकी है… जोशीमठ शहर कई मायने में खास है। इसे गेटवे आफ हिमालय कहा जाता है… कत्यूरी राजाओं ने अपनी राजधानी बनाने के लिए जोशीमठ को ही चुना था… कालांतर में यहां से विश्वभर में धर्म और अध्यात्म की गंगा प्रवाहित हुई… लेकिन अब इस धरती पर अस्तित्‍व का खतरा मंडरा रहा है। जोशीमठ में जमीन फट रही है… बाशिंदों के आशियानें उनकी आंखों के सामने जमींदोज हो रहे हैं।

अब क्‍या होगा उजड़ते जोशीमठ का भविष्‍य?
आज जोशीमठ प्रकृति की मार से कराह रहा है। लेकिन उसकी पीड़ा हरने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। बर्फबारी के बाद यहां के हालात और ज्‍यादा खतरनाक हो गए हैं। कुछ क्षेत्रों में दरारें चौड़ी हो रही हैं। बदरीनाथ और मलारी हाईवे भी भूधंसाव की जद में आया है। इस पर भी तीन स्थानों पर दरारें चौड़ी हुई हैं।

बदरीनाथ हाईवे पर डाक बंगले के पास नई दरारें आई हैं। जोशीमठ-औली रोड भी कई स्थानों पर भी धंसी है। भूधंसाव के कारण जोशीमठ-औली रोपवे भी बंद कर दिया गया है। अब तक जोशीमठ से 334 प्रभावित परिवारों को विस्‍थापित किया जा चुका है। यहां अभी तक 863 भवनों पर दरारें आई हैं। वहीं असुरक्षित घोषित हो चुके दो होटलों समेत 20 भवनों की डिस्मेंटलिंग का काम जारी है।

क्यों धंस रहा जोशीमठ?
अपर सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास डा आनंद श्रीवास्तव के अनुसार जोशीमठ शहर पुराने भूस्खलन क्षेत्र के पर बसा है। ऐसे क्षेत्रों में जल निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने की स्थिति में भूमि में समाने वाले पानी के साथ मिट्टी अन्य पानी के साथ बह जाने से कई बार भूधंसाव की स्थिति उत्पन्न होती है। वर्तमान में जोशीमठ में भी ऐसा ही हो रहा है।

जोशीमठ में वर्ष 1970 से भूधंसाव हो रहा है। लेकिन फरवरी 2021 में धौलीगंगा में आई बाढ़ के कारण अलकनंदा नदी के तट पर कटाव के बाद यह भूधंसाव ज्यादा गंभीर हुआ। भूधंसाव व भूस्खलन के कारणों की तह में जाने और उपचार की संस्तुति करने के उद्देश्य से सरकार ने विशेषज्ञ दल का गठन किया था। इसमें उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानी शामिल थे।

विज्ञानियों के दल ने 16 से 20 अगस्त तक जोशीमठ क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के बाद सितंबर में रिपोर्ट सौंपी थी। इन विज्ञानियों कुछ सुझाव दिए थे। जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ में वर्षा जल और घरों से निकलने वाले पानी के निस्तारण की व्यवस्था की जाए। अलकनंदा नदी से भूकटाव को नियंत्रित करने के लिए तटबंध की व्यवस्था की जाए। शहर से होकर बहने वाले नालों का सुदृढ़ीकरण व चैनलाइजेशन किया जाए। क्षेत्र की धारण क्षमता के अनुरूप निर्माण कार्यों पर नियंत्रण लगाया जाए।

जोशीमठ क्षेत्र से ऐतिहासिक भूकंपीय फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट भी गुजर रहा है। जो भूगर्भ में लावे वाली साथ से कनेक्ट होकर वहां की ऊर्जा को हलचल के साथ सतह तक प्रभावित करता है। पर्यावरणीय कारणों से खिसकने की प्रकृति रखने वाली भूमि के लिए इस तरह की हलचल अधिक खतरनाक बना देती है।

जोशीमठ के ऊपरी क्षेत्र के पहाड़ बर्फबारी के चलते ठोस रहते थे और इन्हें भूस्खलन से महफूज माना जाता था। लेकिन, जलवायु परिवर्तन के चलते इन क्षेत्रों में भी बारिश रिकार्ड की जा रही है। इससे ग्लेशियर या स्नो-कवर वाले क्षेत्र पीछे खिसक रहे हैं। बर्फ के कारण जो जमीन ठोस रहती थी, वह अब ढीली पड़ने लगी है। इसके चलते जामीन में भूस्खलन या धंसाव की स्थिति पैदा हो रही है। जोशीमठ क्षेत्र में बारीक मिट्टी है या फिर बड़े बोल्डर। अत्यधिक बारिश के चलते इनके खिसकने की गति भी बढ़ जाती है।

सात दिन तक लगातार भारी बारिश के बाद आई थी भयंकर आपदा
यह पूरा क्षेत्र वर्ष 1970 में उस समय की सबसे बड़ी त्रासदी झेल चुका है। इस त्रासदी के प्रभाव व कारण को उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट अपनी पीएचडी में बयां कर चुके हैं। प्रो. एमपीएस बिष्ट की पीएचडी के तथ्यों के मुताबिक, यहां की जमीन की संवेदनशीलता का संबंध क्षेत्र के पर्वतीय अंतर (ओरोग्राफिक डिफ्रेंस) से है।

यहां लेसर हिमालय की पहाड़ियों के बाद अचानक से 1800 से 2200 मीटर ऊंचाई की पर्वत शृंखलाएं पाई जाती हैं। जिसके चलते दक्षिणी छोर में भारी वर्षा होती है। जोशीमठ क्षेत्र इसी दक्षिणी छोर में आता है।

संभवतः इन्हीं कारणों के चलते वर्ष 1970 में भी सात दिन तक लगातार भारी से भारी वर्षा रिकार्ड की गई और 20-21 जुलाई 1970 को जोशीमठ क्षेत्र में उस समय की सबसे बड़ी आपदा घटित हुई।

तब जोशीमठ के पूर्व में स्थित ढाक नाले में अत्यधिक मलबा आ गया था। जिसने धौली गंगा का रुख दल दिया था। अलकनंदा व विष्णु गंगा के पास आपस में मिलने वाली कर्मनाशा और कल्पगंगा ने क्षेत्र में भारी तबाही मचाई थी। जोशीमठ के पास हेलंग गांव भी इस तबाही का बुरी तरह शिकार हुआ। इस तबाही के चपेट में भरोसी, डूंगरी, डूंगरा, सलूर जैसे गांव भी आए।

50 से अधिक गांवों ने गहरी मार झेली थी और जोशीमठ के अपस्ट्रीम में 14 पुल तबाह हो गए थे। साथ ही पीपलकोटी से जोशीमठ की तरफ 15 किलोमीटर राजमार्ग पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। बिरही में वर्ष 1859 में एक ताल बन गया था। जिसे गौना ताल कहा गया।

करीब 100 साल बाद 1970 की आपदा में यह ताल टूट गया था। जिसने आपदा की भीषणता को और बढ़ा दिया था। इस तबाही में बेलकुची बांध भी टूट गया था। इस तबाही के मलबे के निशान प्रयागराज तक देखे गए थे।

क्‍या कहते हैं विज्ञानी?
जोशीमठ में तमाम बहुमंजिला भवनों का निर्माण खिसकने की प्रवृत्ति रखने वाले बोल्डरों के ऊपर किया गया है। भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट ने भूविज्ञान की नजर से भूधंसाव की स्थित को करीब से देखा।

उन्‍होंने जोशीमठ क्षेत्र में तमाम बड़े-बड़े बोल्डरों का निरीक्षण भी किया। उन्होंने पाया कि यहां सरकार की मशीनरी से लेकर आमजन ने बोल्डरों को बेडराक (स्थिर चट्टान) समझने की भूल की और इनके ऊपर बहुमंजिला भवन खड़े कर दिए गए।

जोशीमठ में घर व सड़कों पर आ रही दरारों और धंसाव को लेकर रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के विज्ञानियों ने लगातार निगरानी व विस्तृत जांच पर जोर दिया।

विज्ञानियों के अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि जोशीमठ में जल निकासी का अभाव, भवनों का कंस्ट्रक्शन उचित तरीके से नहीं होना, नदी से भू-कटाव, तेजी से हो रहे निर्माण, प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से इस क्षेत्र का संवेदनशील होना भवनों में दरार आने और धंसाव की वजह हैं।

1976 में मिश्रा कमेटी में आधिकारिक तौर पर ये बात उजागर हुई थी कि जोशीमठ में भूमि व भवनों में दरार पड़ रही है। इसके बाद से पिछले वर्ष तक कई रिपोर्ट आईं, लेकिन किसी पर अमल नहीं हुआ।

क्या कहता है इसरो?
इसरो ने भी सैटेलाइट से जोशीमठ का जायजा लिया। यह रिपोर्ट हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर जारी की थी। हालांकि बाद में इसे इसरो की साइट और अन्य स्थानों से हटा दिया गया। जिसमें जोशीमठ क्षेत्र में 12 दिन में ही 5.4 सेंटीमीटर (54 मिलीमीटर) के धंसाव की चौकाने वाली जानकारी दी गई।

यह जानकारी इसरो के हवाले से प्रमुख समाचार एजेंसी पीटीआइ ने जारी की। यह धंसाव जोशीमठ शहर के मध्य क्षेत्र तक सीमित पाया गया। धंसाव का ऊपरी क्षेत्र जोशीमठ-औली रोड पर 2180 मीटर की ऊंचाई पर दर्शाया गया।

यहीं से शुरू हुआ था चिपको आंदोलन, 2021 में आई थी जलप्रलय
चमोली जिले में सात फरवरी 2021 में तपोवन धौलीगंगा में बाढ़ आई थी। ऋषि गंगा में रैंठी ग्लेशियर टूटने से जल प्रलय ने तबाही मचाई थी। 13 मेगावाट की ऋशि गंगा जल विद्वुत परियोजना का नामोनिशान भी मिट गया था।

जबकि सरकार ने आपदा में 206 लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र दिए के साथ आश्रितों को मुआवजा भी दिया गया। आपदा के बाद 88 शव भी बरामद हुए हैं, लेकिन अभी भी कई लोग लापता हैं। जिस रैणी गांव में बाढ़ ने तबाही मचाई थी वह चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी का गांव था।

भूकंप के लिहाज से चमोली संवेदनशील
भूकंप के लिहाज से राज्‍य संवेदनशील है और जोन पांच में आता है। इसमें गढ़वाल का उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग जिला और कुमाऊं का कपकोट, धारचूला, मुनस्यारी क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। इन क्षेत्रों में भी उत्‍तरकाशी सबसे ज्‍यादा संवेदनशील क्षेत्र है। चमोली में 29 मार्च 1999 में भूकंप से भारी तबाही मची थी। तब 103 लोग मारे गए थे। उस दौरान यहां के भवनों को भारी नुकसान हुआ था।

क्यों महत्वपूर्ण है जोशीमठ?
आदि गुरु शंकराचार्य ने इसी स्थली में की थी ज्योर्तिमठ की स्थापना।
बदरीनाथ धाम के साथ ही भविष्य बदरी का प्रमुख पड़ाव।
चीन सीमा से सटा होने के कारण सेना व आइटीबीपी का बेस कैंप।
हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी, प्रथम गांव माणा का अहम पड़ाव।
अंतरराष्ट्रीय हिम क्रीड़ा केंद्र औली का प्रवेश द्वार।
…अब क्‍या होगा जोशीमठ का भविष्‍य?
जोशीमठ का भविष्य अब आधा दर्जन एजेंसियों की जांच रिपोर्ट पर टिका है। जोशीमठ में भूधंसाव की दृष्टि से पहली बार जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल व हाईड्रोलाजिकल समेत अन्य जांच कार्यों में ये एजेंसियां जुटी हुई हैं। इनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा और फिर इसके आधार पर जोशीमठ को बचाने अथवा पुनर्निर्माण के संबंध में कदम बढ़ाए जाएंगे।

उत्‍तराखंड के पांच जिलों में यही हाल
जोशीमठ की तरह ही उत्‍तराखंड के छह और जिले भूधंसाव और दरारों की जद में हैं। पिथौरागढ़, नैनीताल, चंपावत, टिहरी, रुप्रयाग और उत्तरकाशी भी इसी तरह के खतरे का सामना कर रहे हैं।

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