धर्म

शरद पूर्णिमा के व्रत को कभी अधूरा छोड़ने की गलती नहीं करें, पूजन विधि को ध्यान से पढ़ें

शरद पूर्णिमा के व्रत को कभी अधूरा छोड़ने की गलती नहीं करें, पूजन विधि को ध्यान से पढ़ें

प्रातःकाल ही स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित करना चाहिए। उन्हें अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी, आसन और दक्षिणा प्रदान करें तथा विधि विधान से पूजन करें और प्रसाद बांटें।

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस साल यह पर्व 9 अक्टूबर 2022 को पड़ रहा है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाने वाले पर्व शरद पूर्णिमा के बारे में कहा जाता है कि पूरे वर्ष में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। शरद पूर्णिमा को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। बृज क्षेत्र में तो इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य नृत्य किया था।

शरद पूर्णिमा पूजन विधि

इस दिन प्रातःकाल ही स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित करना चाहिए। उन्हें अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी, आसन और दक्षिणा प्रदान करें तथा विधि विधान से पूजन करें और प्रसाद बांटें। इस दिन खीर और पूरियां बनाकर भगवान को उनका अर्द्धरात्रि को भो लगाएं और रात्रि जागरण करें। भोग लगाए प्रसाद को चंद्रमा की रोशनी में रख दें। मान्यता है कि इस दिन अमृत बरसता है और भोग लगाए प्रसाद को खुले में रखने से वह भी अमृत रूपी हो जाता है। अगले दिन यह प्रसाद सभी को दें और खुद भी खाएं। इस दिन व्रत करने के पश्चात कथा अवश्य सुनें।

इसे भी पढ़ें: शरद पूर्णिमा के दिन अनुष्ठान करने से सभी कामों में मिलती है सफलता
शरद पूर्णिमा व्रत कथा

एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। परन्तु बड़ी पुत्री पूर्णिमा का पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। परिणामतः छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लड़का हुआ परंतु शीघ्र मर गया। उसने लड़के को पीढ़े पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा तो बड़ी बहन बोली− अरे तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता।

इस पर छोटी बहन बोली− बहन यह तो पहले ही मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इस घटना के बाद पूरे नगर में यह ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि इस व्रत को पूरा करना चाहिए क्योंकि यह संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत है। उसके बाद से इस व्रत को किसी ने भी अधूरा नहीं किया। विवाहित स्त्रियों को चाहिए कि वह विवाह होने के बाद पूर्णमासी के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से ही शुरू करें। इसके अलावा कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही शुरू किया जाना चाहिए।

IMG-20250402-WA0032

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!